Friday 16 December 2016

गवर्नर उर्जित पटेल ने सरकार की पोल खोल दी


नोटबंदी के एलान का समय अनुकुल नहीं पर हमने ब्लॉग लिखा तो हमारे करीबी दोस्त कहने लगे कि आप विपक्षी की तरह बोल रहे हैं जबकि याद करके देखें तो विपक्षी भी स्तब्ध था कि इस कदम का विरोध किस तरह किया जाय और उनलोगों ने आम जनता के कतार में लगने से उत्पन्न परेशानी को ही विशेष रूप से प्रदर्शित किया । हमारे देश के सभी अर्थशास्त्री भी समर्थन में रहे कि इस फैसले का वर्तमान एवं भविष्य में अच्छे परिणाम होंगे । मैंने भी वक्त मांगा था आज समय भी है और ज्योतिष होने के कारण सिर्फ और सिर्फ ज्योतिष के ही आधार  पर इसका जबाव देना पसंद करूंगा ।
सबसे पहले तो एलान का वक्त मोक्षदा एकादशी के बाद सूर्य के मकर प्रवेश तक के ही समय का चयन करना उचित होता । इसके कई कारण हैं हम ताक शास्त्र आधारित कारण पर ही विचार करेंगे -
1. मोक्षदा एकादशी के बाद शादि-विवाह, गृहप्रवेश या यज्ञ आदि के लिए उचित समय नहीं कहा जाता है जिस कारण लोगों को कम-से कम परेशानी होती ।
2. भारत वर्ष में मृत्यु का दर और दिनों के अपेक्षा इन दिनों सबसे कम होता है । बुजुर्ग सूर्य के उत्तरायण होने का इन्तजार करना चाहते हैं और इश्वर से भक्ति करते हैं कि कम से कम और इतना वक्त जरूर इश्वर दे कि सूर्य के उत्तरायण होने के पश्चात ही दम निकले । ऐसा क्यों इसकी चर्चा महाभारत में है कि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यू का वरदान प्राप्त था और वे तीर की शय्या पर दर्द को बर्दाश्त करते रहे लेकिन सूर्य के उत्तरायण होने पर ही शरीर का त्याग किया ।
3. मोक्षदा एकादशी से पूर्व ही सभी किसान अपने फसल की बुआई 100 प्रतिशत तक कर लेते हैं ।
4. एक महीने आगे की तिथि होने से कुछ नोटों की छपाई और संभव हो जाती जिससे कम से कम समय में नए नोटों की आपूर्ति हो पाती और जनता के साथ-साथ सरकार की भी परेशानी कम होती साथ ही काले धन वाले को भी कम से कम मौका मिलता नोटों को बदलने का ।
यहां कुछ भी नहीं कहा जा सकता एलान हुआ और परिणाम भी हम सभी देख रहे हैं । देश का मिजाज नाम से भी दुसरा ब्लोग लिखा था जिसमें बताने का प्रयास किया था कि उग्र देशभक्ति किसी रूप में स्वीकार्य नहीं होना चाहिए । इसका दुरगामी परिणाम अच्छे नहीं हो सकते । एलान के बाद देश में कमोवेश ऐसी ही स्थिति बनी रही । जो अशिक्षित हैं उनकी बात छोड़ भी दी जाय तो शिक्षित लोग भी पीछलग्गु की तरह इस फैसले का समर्थन करते रहे जबकि बाजार और व्यापार दोनों के उपर बुरा प्रभाव रहा सेंसेक्श और निफ्टी में भी रिकार्ड गिरावट देखी गयी । 

कुछ समय बाद पूर्वप्रधान मंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह के संसद में चर्चा करने पर कि जीडीपी में 2 प्रतिशत की गिरावट आने की संभावना है तो धीमें स्वर में इस तरह से विरोध प्रकट होना शुरू हुआ की विकास दर में कमी आएगी लोग नौकरी से निकाले जाएंगे । संगठित और असंगठित दोनों मजदुरों पर इसका खासा प्रभाव पड़ेगा आदि-आदि लेकिन मुखर होकर कोई भी बोलने से बचता रहा कि इसके परिणाम वर्तमान समय एवं मध्ययम अवधि के लिए नुकशान देह है ।
सरकार को राजस्व का घाटा नहीं होगा क्योंकि यदि व्यापार के चलने से जो राजस्व अन्य माध्यमों से प्राप्त होता वह एडभांस टैक्स और 31 मार्च को वित्तिय वर्ष के अंत में आने वाले टैक्स से पुरा हो जाएगा । 
हमारा मानना है कि इसके बावजुद सरकार को राजस्व का घाटा होगा, विकास दर में कमी आएगी, वेरोजगारी का खतरा बढ़ेगा, प्रशानिक विभागों पर अन्यत्र भार बढ़ेगा जिसका इमानदारी से पालन करना अधिकांश विभाग एवं विभागीय कर्मचारी के स्वभाव में नहीं है । इसका कारण है कि नोट की छपाई एवं वितरण, पुराने नोटों का निबटान करने में आने वाला खर्च भी कई हजार करोड़ों में होगा साथ ही व्यापार की सुस्ती से राजस्व का घाटा अलग से ।
अब फायदे की बात की जाय तो सरकार के दावे का पोल तो रिजर्व बैंक के गवर्नर ने खोल ही दिया कि अपने रूटीन बैठक के बाद भी व्याज दरों में कोई कटोती नहीं कि क्योंकि वो मंदी की आशंका से ग्रसित हैं । इससे बड़ा प्रमाण सरकार को कौन दे सकता है । आम लोगों की परेशानी मौतें आदि तो प्रमाण स्वरूप मानना ही चाहिए ।
काला धन समाप्त हो गया या हो जाएगा इसकी गारंटी तो मोदी जी दे ही नहीं सकते क्योंकि पहले दिन से आजतक कालाधन गुलाबी हो रहा है ये सभी हम सभी मिडिया के माध्यम से जानते ही हैं और कहना चाहेंगे कि जो पकड़ा गया या पकड़ा जाएगा उसका प्रतिशत दशमलव के बाद लगे अंकों में ही होगा ऐसा ही समझना चाहिए अर्थात काला धन एक्सचैंच हो जाएगा या आसानी से हो रहा है । ये और बात है कि मुट्ठी भर लोगों को पकड़ कर ये दावा कर लेना कि काला धन समाप्त कर दिया ।
एक बात और कि यदि आजतक 13 लाख करोड़ से अधिक बैंकों में जमा हो गए तो क्या बचे हुए दिनों में 14.5 लाख करोड़ पुरे नहीं हो जाऐंगे तो काला धन कहां गया यह एक प्रश्न है इसका उत्तर नए साल में हम भी देंगे । सरकार तो जनता को समझाने के लिए अंको की हेरा-फेरी कर ही सकती है ।
हमारे कहने का सार यह है कि वर्तमान समय और आने वाले एक वर्ष तक सरकार के साथ-साथ जनता को इसके नतीजे भोगने होंगे । इसकी तैयारी तो सरकार ने तेल के खेल से कर ली है पर जनता क्या करेगी .................... ।
चन्द्रमा में मंगल की दशा समाप्त होगी तो राहु की दशा आएगी आप और हम योजना और योजनाओं का अंबार समाचार के माध्यम से सुनेंगे लेकिन 2019 तक इसके परिणाम नहीं आएंगे । हमारे पास सुनने के लिए जन-धन योजना, कृषि वीमा योजना, नोटबंदी के अलावा कुछ नहीं होगा इसके बावजुद हम अपना मत तो 2019 विकल्प के आभाव में .......................................................................... ।

Tuesday 6 December 2016

शून्य से शून्य


सबसे पहले तो माननीया स्व0 जयलतिता जी को हृदय से श्रद्धांजली, इश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें । कुछ तो बात रही होगी उनके व्यक्तित्व में जो जनसैलाव भावुक होकर उनके अंतिम दर्शन को उमड़े । मैंने भी टक-टकी लगाकर उनके अंतिम यात्रा को टेलिविजन के माध्यम से देखता रहा और सोचता रहा कि अम्मा ने क्या पाया और क्या खोया, हम सभी जानते हैं कि सबको एक दिन शून्य में समा जाना है फिर भी हाय-हाय के शोर से बचा नहीं जा सकता ।
आज तो अम्मा जी के 68 साल का सफर शून्य से शून्य तक को ही कहना उचित होगा । सभी जानते हैं उनके बारे में कि जब पिता क्या होता है और क्यूं होता है तब दो साल की छोटी उम्र में पिता का साया सिर से उठ गया यह भी एक शून्य ही था उनके जीवन में । माता के लाड-प्यार के साथ बचपन गुजरता लेकिन मां कि व्यस्तता भी उनके जीवन में शून्य की तरह रहा । दसवीं की पढ़ाई तक अव्वल रहने वाली छात्रा अपने मनोनुकुल शिक्षा ग्रहण न कर पायी यह भी एक शून्य था । हम अमीर हैं ऐसे ख्वाब थे लेकिन अमीरी को कायम रखने के लिए कम उम्र में ही काम करना पड़ा क्या ये शून्य नहीं था । न चाहते हुए भी फिल्म में ही करियर बनना पड़ा यह भी जीवन में शून्यता को ही दर्शाता है । जिस क्षेत्र में कार्यरत थी और जितनी खुबसुरत थीं कि दोस्तों की कमी नहीं रही होगी लेकिन कोई हमसफर नहीं हो सका क्या इसको शुन्य नहीं कहेंगे । दत्तक पुत्र को प्यार दिया और उसकी शादि की चर्चा गिनीज बुक के रिकार्ड में दर्ज हुआ और वह पुत्र भी साथ छोड़ गया यहां भी शून्य ही है । एमजीआर का सहारा मिला पर साथ नहीं, उनके देहान्त के बाद की दशा और उस शून्य को तो शायद अम्मा याद भी न रखना चाहती होगी । 
जीवन शुन्य था धन-दौलत की आवश्यक्ता जरूरत से अधिक की न थी फिर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे और सांसारिक चमक को छोड़कर जेल जाना पड़ा क्या ये शून्य नहीं था ? गहनों की शौकिन थी इश्वर की कृपा से किलो की मात्रा में गहने प्राप्त थे फिर भी गहना पहनने से तौबा करना पड़ा यह भी शून्य ही था ।
सीएम की कुर्सी मिलती रही और छुटती भी रही रंगीन संसार के शून्य में रहने वालों की सोच उनके जीवन में तभी तो आया और उस शून्य में रहने वाले गरीबों के लिए जो कुछ भी किया वही तो उनका पुण्य बना और अंतिम समय में अपोलो में सिर्फ शशिकला जैसी दोस्त का सहारा मिलता रहा और अंततोगत्वा पृथ्वी के शून्य में समा गयी ।

बचपन में उत्साह रहे होंगे, जवानी में जोश रहे होंगे, पद का गुमां भी रहा होगा लेकिन शून्य से आये शून्य का साथ रहा और शून्य में विलीन हो गयी ।
हमें आपको समझना चाहिए और हाय-हाय का शोर कम करना चाहिए ।
अम्मा को पुनः नमन के साथ हार्दिक श्रद्धांजली जिन्होंने हमें अपने वर्तमान जीवन को समझने के लिए प्रेरित किया ।

Saturday 19 November 2016

देश का मिजाज


हम बदलेंगे देश बदलेगा तो क्या हम बदलने के लिए तैयार है ? देश के अंदर और बाहर स्थित काला धन समाप्त हो क्या हम प्रयासरत हैं ? सोशल मीडिया पर कमेंट, पोस्ट या अपनी भाषा में जबाव देने को तैयार लोग क्या राष्ट्रभक्त हैं ? काले धन अपने खाते में रख लेंगे 40 प्रतिशत कमीशन लेकर क्या वो राष्ट्रवादी नहीं हैं ? बाजार की हालत - खुदरा बाजार, थोक बाजार, उद्योग आदि पर जो असर है उसके पूर्व ही शेयर बाजार में कई हजार करोड़ रूपये का कैपिटल समाप्त हो गया, आने वाले आर्थिक मंदी से बाजार घबराया है इसका असर आम लोगों को नहीं होगा ? अनगिनत सवाल जबाव में एक ही शब्द आता है राष्ट्रभक्ति ।
हम सभी लोगों को समझना होगा कि आजादी के 70 साल से लेकर आजतक कितने कानुन बनाए गए सेना से लेकर कितने पुलिस बलों की भर्ती की गयी, कितनी योजनाएं बनायी गयी लेकिन हम मुलभुत सुविधाओं से आज भी बंचित हैं अपनी आर्थिक, सामाजिक एवं व्यक्तिगत सुरक्षा को भी सुनिश्चित करने में सफल नहीं हो पाए क्या ये हमारे द्वारा चुने गये सरकारों की नाकामी नहीं है क्या कभी उनलोगों ने जिम्मेदारी ली ? हर समय देश की जनता ही जिम्मेदार थी है और आगे भी रहेगी हम-आप जितना देश भक्त हो जाएं लुटेरों पर कोई असर नहीं होगा ।
आज देश का मिजाज है कि कोई प्रधानमंत्री ऐसा आया है जिसमें कुछ कर गुजरने का साहस है जो अपने जज्बे से देश को चलाना चाहते हैं सब कुछ देश के लिए छोड़ा है यही कारण है कि देशवासियों को लाख पीड़ा हो रही है लेकिन दम साधे पंक्तिवद्ध हैं और अपनी बारी का इन्तजार कर रहे हैं और मोदी जी का गुणगान भी । इस मिजाज से टकराना किसी के लिए भी आसान नहीं है ।
आज राष्ट्र पीछे है और राष्ट्रभक्ति आगे क्या इसको समझने का सामर्थ्य कितने लोगों के पास है ? वर्तमान में सरकार के द्वारा सभी कदमों को राष्ट्रभक्ति से जोड़ दिया जाता है खुब शोर होता  है और राष्ट्रभक्ति आगे हो जाती है और राष्ट्र पीछे ।
हमारे बोलने और करने में समानता है आज हम सभी नेता हैं बड़ी-बड़ी बातें करते हैं सबकुछ ठीक हो जाएगा इश्वर करे ऐसा ही हो लेकिन क्या हम इसके लिए तैयार हैं ? 
क्या हम और आप इमानदार हैं ? 
क्या मैं मेरा मिजाज एक जैसा काम कर रहा है ?
दिल पर हाथ रखकर सोचें ...................................


Sunday 13 November 2016

ज्योतिष के अनुसार नोटबंदी के एलान का समय अनुकुल नहीं


ज्योतिष के अनुसार नोटबंदी के एलान का समय अनुकुल नहीं 15 अगस्त 1947 रात के 12 बजे स्वतंत्र भारत का जन्म हुआ और उस समय के महान ज्योतिषियों ने स्थिर लग्न में अभिजित मुहुर्त का चयन किया था जिसके कारण आज तक भारत अखण्ड प्रगतिशील है । उस समय बृष लग्न और कर्क राशि में चन्द्रमा था । उस समय के अनुसार ही भारत की भविष्यवाणी की जाती है । 

एलान का समय अनुकुल नहीं -
पहला कारण - चन्द्रमा आठवें स्थान में
जिस समय मोदी जी ने नोटबंदी का एलान किया उस समय चन्द्रमा भारत के पत्रिका के अनुसार आठवें स्थान में था और मोदी जी की पत्रिका में मोदी जी के बृश्चिक राशि से चौथा दोनों ही स्थानों में चन्द्रमा के गोचर को शुभ नहीं माना जाता है ।
दुसरा कारण - (चन्द्रमा में मंगल की दशा )
सभी ज्योतिष जानते हैं कि व्ययेश की दशा अच्छी नहीं होती मंगल हमारे देश के सेना को प्रदरर्शित करता है हम सभी जानते हैं कि रोज ही किसी न किसी रूप में हमारे सेना की सहादत हमारे समक्ष उपस्थित हो रहा है और भारत युद्ध के मुहाने पर खड़ा है आंतरिक परेशानियों के कारण युद्ध करना संभव नहीं हो पा रहा और हम किसी न किसी रूप में रक्षात्मक मुद्रा में ही हैं । 
सर्जिकल स्ट्राईक कर देशवासियों के उबाल को जरूर कम कर दिया गया ।
चन्द्रमा मन का कारक होता है और मंगल उद्वेग का । किसी न किसी रूप में आमलोगों मानसिक पीड़ा होनी ही थी इसलिए एलान हुआ । क्या इसे हम ज्योतिष अवश्यमभावी मानकर भुल जाएं ।
तीसरा कारण - (शनि का पंचम गोचर) 
भारत की राशि कर्क के अनुसार शनि का पंचम गोचर है और 26 जनवरी 2017 तक शनि को बृश्चिक राशि में ही रहना है । अर्थात किसी भी जन सामान्य को तो कम से कम जनवरी तक राहत मिलने की संभावना नहीं है ।
चौथा कारण - (सूर्य का चतुर्थ गोचर) तुला राशि में स्थित होकर जनता स्थान से सूर्य का गोचर यह स्पष्ट करता है कि जनता को कष्ट होगा ही । 
पांचवा कारण - (मोदी जी की राशि स्थित शनि) 
वैसे तो मोदी जी के त्रिकोण का स्वामी चन्द्रमा है इसलिए उनको साढ़ेसाती का प्रभाव नहीं होगा और नवम और लग्न के स्वामियों का स्थान परिवर्तन बहुत ही अच्छा राजयोग बना रहा जिसके कारण प्रधानमंत्री पद प्राप्त हुआ । लेकिन शनि अपना प्रभाव नहीं छोड़ता उनके निर्णय में कहीं न कहीं यह दिखता है ढेर सारे निर्णय लिए गए लेकिन किसी भी निर्णय का अभी तक कोई अनुकुल परिणाम नहीं आया है यहां तक कि सर्जिकल स्ट्राईक के बाद पाकिस्तान के हरकतों में भी कोई सुधार नहीं है ।
कारण को ज्योतिष के दृष्टि से देखना और समझने से पता चलता है कि एलान का वक्त सही नहीं था आम जनता को जनवरी तक राहत मिलने की संभावना नहीं है । चाहे सरकार लाख इंतजाम करें ।
भारत के साथ-साथ प्रधान मंत्री दोनों के चन्द्रमा की दशा चल रही है इसलिए हमारा सलाह है कि किसी भी निर्णय से पहले सभी पहलुओं पर विचार अवश्य कर लेना चाहिए ।
आगे परिणाम की भी चर्चा विस्तृत रूप से करने का प्रयास करेंगे ।

ऐतिहासिक फैसला लेते समय हमेशा प्रभावशाली दिखने वाले प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर उदासी छायी रही । इसके सफलता की बात करते समय वो अन्दाज नहीं था जो अन्य भाषणों में दीखता था । मोदी जी ने जो कदम उठाए हैं उसको संभालने के लिए संयम और साहस की जरूरत है जिसे वो निश्चित निभा पाने में सफल होंगे इश्वर से दुआ मांगनी होगी नहीं तो हम नागरिकों को तो सड़क पर पंक्तिबद्ध कर ही दिया है । दुरगामी परिणाम क्या होंगे इसको तो समझने और अर्थशास्त्री को भी मंथन करने में कम से कम तीन से छः महीने का वक्त लगेगा । हम प्रयास करेंगे कि ज्योतिष के अनुसार इसके परिणाम की चर्चा जरूर रखें ।

Wednesday 14 September 2016

समस्याओं का हल शास्त्रानुसार



गुजरात, हरियाणा, कश्मीर तथा कर्नाटक के साथ देश के सभी समस्याओं का हल शास्त्रों ने एक ही पंक्ति में समेट रखा है । शासक अपने गुण स्वरूप (कर्तव्यों) के अनुरूप क्यों नहीं चलते ।
आज के परिवेश में सभी लोग जो राष्ट्र के विषय में सोचते हैं या समाचार सुनते और अपनी-अपनी राय बनाते हैं उन सभी के लिए एक प्रश्न जो महाभारत में श्री कृष्ण से अर्जुन ने पूछा - हे वृष्णिवंशी ! मनुष्य न चाहते हुए भी पापकर्मों के लिए प्रेरित क्यों होता है ? ऐसा लगता है कि उसे बलपूर्वक उनमें लगाया जा रहा हो । 
आज के परिवेश में इस बात को यथार्थ रूप में कहीं भी देखा जा सकता है वर्तमान समय में हमारे द्वारा चुने हुए हमारे प्रतिनिधि जो सरकार के साथ संविधान के अन्तर्गत अच्छे कार्यों का सहयोग और बुरे कार्यों का विरोध कर आमजनों के हित के लिए काम करे जो उनकी जिम्मेदारी है ।
लेकिन वे क्यों पापकर्मों के लिए प्रेरित होते और आम लोगों को भी प्रेरित कर राष्ट्र का नुकशान करते हैं । राजनैतिक लाभ-हानि की बात यदि होती रही तो हम विश्व गुरु कैसे बनेंगे । 

आरक्षण की बात हो, पानी की बात हो, कश्मीर की बात हो, सामाजिक न्याय की बात हो, गौ हत्या की बात हो राम मंदिर की बात हो चाहे महिला उत्पीड़न की बात हो, दलित उत्पीड़न की बात हो किसी का समाधान क्यों नहीं हो पाता । क्या यह लोकतंत्र की जटिलता के कारण हो रहा या हमारी कुत्सित मानसिकता के कारण  
हमारा देश विविधता में एकता को मानने वाला है हमारी संस्कृति मानव कल्याण की बात सिखाता है तो विरोध किस बात के लिए होता है । सरकार के द्वारा बनाये कानुन को भी जन समुहों के द्वारा तोड़ा जा सकता है, संविधान पर चलने वाले देश में मुट्ठी भर लोग एकत्रित होकर संविधान की अवहेलना कर सकता है तो कानुन और सरकार का औचित्य क्या है ? सरकार की जिम्मेदारी है आम लोगों से कानुन का पालन करवाना तो राजनैतिक लाभ-हानि के लिए आम लोगों को उकसा कर धरना-प्रदर्शन, जुलुस आदि के नाम पर सरकारी सम्पत्ति का नुकशान और आम लोगों के जान-माल की क्षति पहुंचा कर किसका लाभ होता है ।
गुजरात व हरियाणा में आरक्षण के नाम पर, कश्मीर में आजादी के नाम पर, पुरे देश में गौ हत्या के नाम पर, कर्नाटक में पानी के नाम पर कब तक हम देश का नुकशान करते रहेंगे ।
हल जब सरकार के पास नहीं तो आम इंसान को गीता ही याद आता है । इश्वर सबको गीता का ज्ञान दें और हमारे देश में शांति और सदभाव बना रहे । ऐसे सभी मुद्दों का हल संभव है इसके लिए सभी सरकार व राजनैतिक लोगों को अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा । शास्त्रों में कहा गया है कि राजा को क्रूर होना ही चाहिए । 
हमने वेदांग ज्योतिष में भी पढ़ा है कि सूर्य राजा के कारक होते हैं और सूर्य के गुण स्वरूप में क्रूरता स्वभाविक होता है तो इस सनातन सत्य को क्यों नहीं मानते और बल पूर्वक ऐसे आन्दोलन का दमन क्यों नहीं किया जाता । 
ज्योतिषाचार्य श्रवण झा “आशुतोष”
मो0 - 9911189051

Friday 10 June 2016

हास्यास्पद है राशिनुसार नित्य नए रंगों का प्रयोग बताना


सबसे पहले तो कहेंगे कि हमारे शास्त्रीय पुस्तकों तथा वेदों में ऐसा नहीं बताया गया है कि राशिनुसार नित्य नए रंगों के प्रयोग से भाग्य बदल सकता है या किसी अशुभ परिणामों को शुभ परिणामों में परिवर्तत करता है ।  अगर किसी ने ऐसा शास्त्रीय पुस्तकों में पढ़ा हो तो जरूर हमें मेल करके बताएं साथ ही संबंधित पुस्तक का नाम भी बताएं । जो लोग ऐसी व्याख्या करते और जो अनुकरण करते हैं उसे भी समझना चाहिए कि हम शास़्त्रों की सार्थक व्याख्या होनी चाहिए न कि निरर्थक ।
यह भी बताना चाहेंगे कि किसके लिए कौन सा रंग शुभ है और जीवन भर वो रंग शुभ रहेगा ऐसा बताना संभव है वो भी लग्न व राशि तथा उसके स्वामी के स्वभाविक रंग के आधार पर ।
सर्व प्रथम तो पराशर के अनुसार राशियों के रंग का वर्णन करते हैं -
मेष - रक्त वर्ण, बृष - श्वेत, मिथुन - हरा, कर्क - पाटल, सिंह - पाण्डवर्ण, कन्या - चित्रवर्ण, तुला - कृष्ण वर्ण, बृश्चिक - पिशांगवर्ण, धनु - चित्रवर्ण, मकर - चित्रवर्ण, कुंभ - भुरेवर्ण तथा मीन - सफेदवर्ण का कहा गया है ।
किसी के लिए लग्न या राशि तथा उसके त्रिकोण राशि के रंग को शुभ कहेंगे । लग्न या राशि के स्वामी के मित्र ग्रहों की राशि के रंगों को शुभ कहेंगे । 

जब ग्रह और राशियों के रंग नित्य नहीं बदलते तो हमारे लिए नित्य नए रंगों का शुभ या अशुभ होना कैसे संभव है । चन्द्रमा के आधार पर बताया जाए तो भी चन्द्रमा एक ही राशि में 54 से 56 घंटे तक गोचर करते हैं तत्पश्चात ही राशि परिवर्तन करते हैं लेकिन हम जैसे ज्योतिष तो प्रतिदिन ही अलग-अलग रंग हमारे लिए शुभ और अशुभ बताते हैं ।
यदि कोई सिद्धान्त होता तो सभी ज्योतिष एक जैसा ही रंग बताते लेकिन यहां तो मेष के लिए कोई लाल बताता तो कोई हरा अन्य कोई रंग बता जाता है किसको सही माने किसको गलत । सिद्धान्त पर आधारित होता तो बारह के बारह राशियों के लिए सभी ज्योतिष किसी भी दिन के लिए एक समान ही रंगों को बताते ऐसा नहीं देखा गया । यहां यह भी कहना संभव नहीं है कि किसको ज्ञान है और कौन अज्ञानी क्योंकि ज्योतिष में विश्वास करने वाले सभी लोग ज्योतिषियों को विद्वान ही मानते हैं । 
कहा गया है आपरूप भोजन और पररूप श्रींगार आज के परिवेश में तो और भी आगे की बात समझ में आती है कि आयोजन एवं जरूरतों के अनुकुल रंगों का चयन करना चाहिए और लोग करते हैं ये बहुत अच्छी बात है ।
हम ज्योतिष के मानने वाले को सिर्फ इतना ही कहना चाहेंगे कि आप राशि के रंगों का ध्यान में रख सकते हैं तथा अपने रंग-रूप, आकृति-प्रकृति एवं आयोंजन के आधार पर रंगों का चयन कर रंगों का प्रयोग कर सकते हैं आपके मन को सकुल मिलेगा ।
ऐसे अंधविश्वासों से आप खुद भी बचें और औरों को भी बचाने का प्रयास करें नहीं तो धीरे-धीरे लोगों का विश्वास हमारे ज्योतिष शास्त्रों से उठ जाएगा ।
आग्रहपूर्वक पुनः कहना चाहेंगे कि यदि विद्वान ज्योतिष ने कहीं भी ऐसा सिद्धान्त पढ़ा और उसकी व्याख्या की हो तो उदाहरण प्रस्तुत करें ताकि हम अपना ज्ञानवर्धन कर सकें और अन्य लोगों का विश्वास नित्य नए रंगों के प्रति गहरा हो सके और अधिक से अधिक लोग मान सकें ।

Thursday 2 June 2016

संशय छोड 04.06.2016 शनिवार को मनायें वटसावित्री व्रत


उत्तर पूर्व भारत में सौभाग्य प्राप्ति हेतु विशेष रूप से मनाया जाने वाला व्रत वटसावित्री के तिथि निर्धारण एवं शास्त्रोक्त निर्णय ।
एक बात तो स्पष्ट होता है कि ज्ञान के आभाव और ज्ञान के दंभ के कारण हमारे पारिवारिक, सामाजिक एवं वैश्विक हित का बड़ा नुकशान होता है । आज चर्चा तो बटसावित्री व्रत की बात करेंगे ब्राह्मण या विद्वान ज्योतिषीय के द्वारा पंचाग आधारित व्रत किस तिथि को मनाया जाय इसमें भेद होता है जबकि हमारे शास्त्रों में भेद का कोई स्थान नहीं है, सबसे पहले वो गृहणियां जो इस व्रत को करती हैं वो अपने-अपने सूत्र से जानकारी एकत्रित कर खुद असमंजश की स्थिति में होती हैं और अपने-अपने आधार को पुख्ता मानकर व्रत को करती हैं । आज हमारे पास ये लिखने कारण है कि गृहणियों द्वारा लिए गऐ अपने-अपने सूत्र से व्रत हेतु निर्णय का समर्थन प्राप्त करने के लिए प्रश्न आया शुक्र है मैं उनसबों को समझाने में सफल हुआ लेकिन प्रश्न वहीं स्थिर है कि ऐसी परिस्थितियां क्यों उत्पन्न होती है । क्या इसके लिए हम ज्ञानी ही जिम्मेवार हैं तो इसका सामना भी सरल स्वभाव से हमलोगों को ही करना होगा ।
तिथि केप्लर सिद्धान्त पर नहीं चलता यहां सूर्य एवं चन्द्रमा के गति पर आधारित होने के कारण एक निश्चित समय में प्रारंभ और अंत नहीं होता इसलिए उदया तिथि की विशेष मान्यता होती है जो एक मोटी जानकारी है इसके कारण ही संशय उत्पन्न होता है, लेकिन ये अंतिम सत्य नहीं होता अगल-अलग व्रत के लिए अलग-अलग निर्णय लेने होते हैं जो शास्त्रों में वर्णित है । प्रसंग लंबा हो जाएगा इसलिए वट सावित्री के ही विषय में बात करते हैं -
वटसावित्री व्रत निर्णय शास्त्रोक्त - 
वटसावित्री व्रत पूजाविधौ ज्येष्ठामावास्या सम्भवे चतर्दशी विद्धैव ग्राह्या प्रतिपदायुतायाः निषेधात् ।
यहां स्पष्ट है कि चतुदर्शी सहित अमावश ही ग्राह्य है न कि प्रतिपदा सहित । यहां किसी संशय को जगह नहीं दिया गया है ।
वर्ष 2016 में ज्येष्ठ अमावश जो चतुर्दशी सहित है  04.06.2016 दिन शनिवार इसलिए व्रत को इसी दिन मनाना उचित होगा ।
यहां जब चतुर्दशी सहिता अमावश को मनाया जाय तो समय निर्धारण न करते हुए निःसंदेह दिनपर्यन्त तक मनाया जाय ।
शास्त्रानुसार 05.06.2016 दिन रविवार को निषेध कहेंगे ।

स्कन्ध पुराण में वर्णित वटसावित्री व्रत में ब्रह्मा एवं सावित्री के पूजन का विधान बताया गया है । इस व्रत को करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है । पति की लंबी आयु एवं पिता के चिर साम्राज्य तथा कुलोन्नत्ति तथा जन्मजन्मांतर तक सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है ।
स्कन्ध पुराण में वर्णित पतिव्रता सावित्री एवं सत्यवान की कथा का स्मरण करना चाहिए । विवाहिता स्त्री आज के दिन ब्रह्मा एवं सावित्री की पूजा करती हैं । सावित्री-सत्यवान की कथा को पढ़ती या सुनती हैं साथ ही वटवृक्ष की पूजा, वटवृक्ष की परिक्रमा आदि का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है । व्रत के सभी विधान वटवृक्ष के नजदीक ही करने का विधान है ।
कथा सभी जानते हैं हमारा प्रयास तो सिर्फ आप सभी का संशय दुर करना था ।
ज्योतिषाचार्य पं. श्रवण झा “आशुतोष”
संपर्क - 9911189051, ashutoshastrometer@gmail.com
https://www.facebook.com/TruthsOfAstro/

Monday 30 May 2016

मोदी जी की विदेश यात्रा आन्तरिक मामलों में हार तेज होगा व्यापार


मोदी जी का जन्म दिवस 17 सितम्बर 1950 दिन के 11.00 ए.एम वडनगर के अनुसार बृश्चिक लग्न और बृश्चिक राशि विंशोत्तरी महादशा चन्द्रमा में शनि का जुन के प्रथम सप्ताह में ही प्रत्यंतर में लाभेश बुध की दशा प्रारंभ होगी ।
मोदी जी की विदेश यात्रा 4 जुन से प्रारंभ होकर 9 जुन तक का है जिसमें वो 4 जुन को अफगानिस्तान जाएंगे और उसी दिन कतर के लिए रवाना होंगे 4 व 5 जुन को कतर में रहेंगे उसके बाद 6 जुन को स्वीटजरलैंड, 7 एवं 8 जुन को अमेरिका तथा 9 जुन को मेक्सिको के लिए रवाना होंगे । अच्छी बात है कि यात्रा प्रारंभ के दिन सप्तम चन्द्रमा रहेगा और अफगानिस्तान में जाकर विरोधियों को जाबाव देंगे और आपना लोहा मनवाने का प्रयाश करेंगे अफगानिस्तान पर उपकार किये इसका भी दंभ होगा साथ ही प्रयास होगा कि अफगानिस्तान खुलकर भारत का मदद करे जिसमें आश्वासन मिलेगा कामयाबी नहीं । उद्घाटन और भाषण प्रभावशाली होगा  साथ ही चन्द्रमा सूर्य, शनि, मंगल के प्रभाव में होने से विशेष सावधानी की जरूरत होगी किसी भी प्रकार के सुरक्षा में ढील खतरनाक हो सकता है । कतर की यात्रा संतोषप्रद होगी और व्यापार की बात में आगे बढ़ेंगे और पूर्ण रूप से कामयाब होंगे । अपने मनोनुकुल समझौता होने से संतोष होगा और सम्मान पाकर गद-गद भी होंगे । लेकिन कतर और अफगानिस्तान में आतंकवाद पर चर्चा होगी और सिर्फ चर्चा होगी दुविधा बनी रहेगी ।
स्वीटजरलैंड जाकर भारतीयमूल के लोगों में भारतीयता भरने का भरसक प्रयास करेंगे और मेकइन इंडिया में सहयोग करें इस बात पर विशेष बल देंगे । यहां के लोगों के साथ-साथ सरकारी कार्यक्रम अपने मनोनुकुल करवाने में सफल होंगे अर्थ लाभ की अभिलाषा दुरगामी प्रभाव में रंग लाएगा ।

अमेरिका यात्रा के आखिरी दिन कर्क राशि में चन्द्रमा गोचर के अनुसार चन्द्रमा का नवम गोचर होगा मोदी जी के पत्रिकानुसार चर राशि का चन्द्रमा हो जाने के कारण पूर्व निर्धारित संवाद में परिवर्तन लाना होगा इसके बावजुद अपनी बातों को स्पष्टता से रखने में सफल होंगे । 
चन्द्रमा के अंतर में शनि जो इनके पत्रिका में चतुर्थेश है साथ ही दशा अक्ष 4-10 का होने के कारण अपने कार्यप्रभाव से ओबामा को प्रभावित कर उनके आखिरी कार्यकाल का लाभ उठाने का प्रयास करेंगे । व्यापार संबंधी बातों में बुध का प्रत्यन्तर होने के कारण शतप्रतिशत सफल होंगे लेकिन चतुर्थेश शनि का मंगल और सूर्य के प्रभाव में होने के कारण आन्तरिक सुरक्षा की चर्चा करेंगे और पाकिस्तान के उपर दबाव बनाने की बात होगी लेकिन बातों को सिर्फ रखने में सफल होंगे अपेक्षा के अनुकुल अमेरिका से मदद नहीं मिलेगा । अमेरिका के लिए व्यवसाय ही मुल विंदु रहेगा ।
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर भी मोदीजी की यात्रा विशेष पभाव डालेगा शारीरिक भाषा से ही बताने में सफल होंगे कि वो किन्हें अगले राष्ट्रपति के रूप में देखना चाहेंगे । चन्द्रमा लग्न में स्थित मंगल की राशि बृश्चिक का होने के कारण अपनी राजनैतिक कलात्मकता से पुनः सबको प्रभावित करेंगे और अपने कुछ असफलताओं को छुपाने में सक्षम रहेंगे ।
चतुर्थेश शनि मंगल एवं सूर्य के प्रभाव में होने के कारण वर्तमान विदेश यात्रा आंतरिक मामलों में विदेशी सहयोग की दृष्टि से असफल होगा ।

Thursday 12 May 2016

स्त्री के लिए घटविवाह तो पुरूष के लिए....?


आप सभी ज्योतिष में रूचि रखने वाले ज्योतिष को जानने एवं मानने वालों के लिए कहना चाहेंगे कि मंगल दोष जिसे मांगलिक दोष के नाम से जानते हैं क्या इसको मानना चाहिए या नहीं यदि मानना चाहिए तो किस हद तक मानना चाहिए साथ ही इसके जो उपाय बताए जाते हैं उसपर कितना भरोसा करना चाहिए यह एक प्रश्न है ? 
आज के परिवेश में दोष बताकर उपाय करना ही ज्योतिषियों का काम बचा रह गया नित्य अपने ज्ञान को बढ़ाना या अनुभव से शास्त्रीय श्लोकों की व्याख्या करना मुश्किल है ऐसे नमुने उपाया ढुंढ कर बताया जाय जो कभी किसी न सुना न हो इसके लिए ज्योतिष की पुस्तक छोड़ टोने-टोटके की पुस्तक का विशेष अध्ययन करते हैं ।
मंगल दोष या मांगलिक जातक की पत्रिका में कैसे देखा जाता है साथ ही इसका प्रभाव कितना हो ये सब कुछ समझना दैवज्ञों के लिए आसान है । लेकिन मंगल दोष को लेकर मिथ्या बात करने वालों को समझना और समझाना उतना ही मुश्किल । आप लोग सभी सुनते हैं कि घोर मांगलिक है और आंशिक मांगलिक है, मंगल भारी है, प्रबल मांगलिक है ऐसे शब्द अक्सर सुनने में आते रहता है । 
आज सिर्फ इतना कहना चाहेंगे कि स्त्री जातक के लिए मंगल दोष होने पर घट विवाह तथा बृक्ष विवाह जिसमें पीपल के पेड़ से विवाह आदि बताए जातो हैं तो पुरूष जातक मांगलिक हो तो उसके लिए कौन सा उपाय बताया जाता है कभी आपने सुना, नहीं सुना तो क्या ऐसा कुछ लिखा है तो क्या कहीं पढ़ा नहीं पढ़ा तो पढ़ने एवं जानने का प्रयास करें नहीं तो आप अर्थहीन टोने-टोटके करते रहेंगे और आपको लाभ कुछ नहीं मिलेगा और समय के साथ धन भी खर्च होगा ।

घटविवाह, बृक्ष विवाह आदि की बात मुहुर्त चिंतामणी में लिखा है लेकिन उस स्त्री जातक के लिए जिसके पत्रिका में वैधव्य योग बना हो । किसी के मांगलिक होने मात्र से वैधव्य योग नहीं बन सकता है इसके लिए अध्ययन जरूरी है । 

Saturday 7 May 2016

कभी क्षय नही होता अक्षय तृतीया से प्राप्त पुण्य

वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया को ही अक्षय तृतीया के रूप में मनाते हैं । अक्षय का अर्थ ही होता है जिसका कभी क्षय नही होता। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की गणना युगादि तिथियों होती है । ऐसी मान्यता है कि इसी तिथि को कभी सतयुग और त्रेतायुग का प्रारम्भ हुआ था। तृतीया तिथ के साथ कृतिका या रोहिणी नक्षत्र हो और बुधवार या सोमवार दिन हो तो विशेष रूप से प्रशस्त माना गया है । अक्षय तृतीया के दिन सनातन धर्म को मानने वाले स्नान दान यज्ञ आदि किया करते हैं ताकि उनके द्वारा किये कार्य से प्राप्त शुभ का क्षय नहीं हो । 
अक्षय तृतीया की ही तिथि को भगवान बद्रीनाथ के कपाट खोले जाते है। इस वर्ष तो महाकुंभ के शाही स्नान की तिथि भी अक्षय तृतीया के दिन निश्चित है । इस वर्ष 09 मई दिन सोमवार को मृगशिरा नक्षत्र में एंव सुकर्मा योग में अक्षय तृतीया पड़ रही है। अक्षय तृतीया को किसी कार्य को करने के लिए पंचाग शुद्धि की आवश्यकता नहीं होती परन्तु इस वर्ष शुक्र के अस्त होने के कारण विवाह आदि के मुहुर्त नहीं बताए गए हैं साथ ही ऐसे कार्य जिससे भौतिक सुख-सुविधा का बोध हो उसे भी वर्जित कहा गया है ।
शुक्र ग्रह के अस्त होने पर जो त्याज्य कर्म शास्त्रों में बताए गए हैं गृहप्रवेश, शिलान्यास, कूपारम्भ, तालाब एवं उपवन, वधू प्रवेश तथा द्विरागन आदि ।  किसी भी व्रत का उद्यापन, अष्टका श्राद्ध, गोदान, बालकों के जातक कर्म, नामकरण संस्कार, कर्णभेदन, देवस्थापाना, मन्त्र दीक्षा, मुण्डन, उपनयन,  सन्यास ग्रहण, राज का दर्शन आदि के लिए मना किया जाता है 
आजकल के परिावेश में सोने-चांदि, रत्नादि के खरीदने का प्रचलन है क्योंकि रत्नादि के मूल्यों का भी क्षय नहीं होता और ये सदैव मुल्यवान होने के साथ-साथ अक्षय होते हैं । जबकि हमें अपने पुण्य कर्मों से प्राप्त शुभ फल की चिंता करनी चाहिए और पुण्य कर्म करने चाहिए । वैशाख में छतरी एवं जल दान तथा शीतल जल हेतु घड़ा आदि का दान कहा गया है । अक्षय तृतीया के दिन पनसाला आदि की व्यवस्था मासभर के लिए करने से पुण्य फल के भागी होते हैं 
कहा भी गया है -
अष्टादश पुराणेशु व्यासस्य वचन द्वयम् ।
परोपकाराय पुण्याय पापाय पर पीडनम ।।
अक्षय तृतीया के दिन परोपकार करने से प्राप्त पुण्य का कभी क्षय नहीं होगा । 

अक्षय तृतीया को पड़ने वाले योग - 
सर्वार्थ सिद्धि - 
सूर्योदय से लेकर रात्रि 12 बजकर 08 मि. तक होगा ।
सर्वार्थ सिद्धि योग - 
सूर्योदय से लेकर रात्रि 12 बजे तक अमृत सिद्धि योग रहेगा। 
खरीद्दारी के शुभ मुहूर्त -  
अमृतसिद्धमुहुर्त का चयन रत्नादि की खरीद के लिए कर सकते हैं जिसमें स्थानीय समायनुसार दोपहर 12 बजे से 48 मिनट पूर्व एवं पश्चात के समय का चयन करने से आप अभिजित मुहुर्त का भी पालन कर लेते हैं । साधारण रूप से कहना चाहें तो अक्षय तृतीया की तिथि में किसी मुहुर्त आदि का विशेष महत्व नहीं है ।

कुछ लोकप्रिय जन टेलिविजन पर कहते नजर आ रहे हैं कि इस बार की अक्षय तृतीया अक्षय नहीं होगी ऐसे संवाद से बचें विवाह आदि जो उपर आपको बताया गया है उसके लिए अलग से निर्णय लिया जाता है इसलिए मिथ्या प्रलाप से बचना जरूरी है । अक्षय तृतीया उतनी ही अक्षय है आपके द्वारा किये पुण्य कर्म या रत्नादि के खरीद के लिए शुभ है ।
धन्यवाद !

राशिनुसार नित्य नये उपाय एक मिथ्या प्रचार

राशिनुसार नित्य नये उपाय एक मिथ्या प्रचार

आजतक सभी ज्योतिष एवं ज्योतिष पुस्तकों में लिखे संवाद का मुल होरा पराशर से ही लिया गया है होरा पराशर के अध्ययन के बिना किसी भी प्रकार के ज्योतिष या वास्तु की कल्पना नहीं की सकती । 18 प्रवर्तकों के बाद आज किसी की पुस्तक पढ़ने का दिल करता है तो गोपेश्वर नाथ ओझा का फलदीपिका, रामानुचार्य का भावर्थ रत्नाकर के साथ बी. भी रमन की पुस्तक जो अगल-अलग विषयों पर लिखे हैं और अपनी व्याख्या में ज्योतिष के मार्ग से भटके नहीं और कहीं दावा भी नहीं किया कि ये सूत्र मेरे द्वारा पतिपादित हैं । आज के बड़े विद्वान लेखक नकल कर पुस्तक लिखते हैं और कहते हैं ये हमारा अनुभव के द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त है जिसका पोल टेस्ट बुक पढ़ने वाले पाठक को आसानी से पता चल जाता है कि कहां से नकल किया । हम इसे भी अच्छा मानते हैं चलो कुछ तो सरलीकरण कर आमलोगों के पढ़ने योग्य बनाया परन्तु बहुत दुःख होता है जब ज्योतिष बनकर ऐसी बातें करते हैं जो शास्त्र सम्मत हो ही नहीं साथ ही ऐसे मिथ्या प्रचार नेशनल चैनल के माध्यम से करते हैं । उन्हीं बातों मे से एक बात जिसकी चर्चा करना चाहता हूँ कि हमारे लोकप्रिय ज्योतिषाचार्य अपने कार्यक्रम में बताते हैं मेषादि राशि वालों के लिए आज का दिन कैसा रहेगा यहां तक तो समझ में आता है कि ग्रहों के गोचर के अनुकुल चन्द्रमा को विशेष रूप से ध्यान में रखकर बताना संभव है, जबकि ये कार्य भी मुश्किल है कि कोई सिर्फ किसी के राशि को जानकर या समुचे संसार को 12 राश्यिों में बाँट कर शुभाशुभ परिणाम कैसे बता सकते हैं । हम रोज ही जातक को तीन चरणों में बांटकर, अनेक प्रकार के कार्य व्यवसाय को ध्यान रखकर साथ ही लिंगानुसार सोचसमझ कर लिखने और बताने का प्रयास करते हैं और स्वयं ही बहुत संतुष्ट नहीं होते ।
अब बात करते है जो लोग प्रत्येक राशि के बाद नित्य नये उपाय बताते हैं जैसे कि मेष राशि वाले हनुमान जी को आज 11 लड्डु का भोग लगाएं एवं बृष राशि वाले सरस्वती के 12 नामों का आज जप करके घर से बारह जाएं इसी तरह अन्य राशियों के लिए अलग-अलग उपाय कभी तो ऐसा भी सुना कि मिथुन राशि वाले बायां नाक साफकर काम पर निकलें और पुनः अगले दिन 12 राशियों के लिए भिन्न-भिन्न उपाय बता देते हैं । 
क्या ये संभव है ?
यह किस ग्रंथ में लिखा है ?
किस श्लोक की व्याख्या से यह ज्ञान प्राप्त हुआ है ?
क्या बिना उपाय किये जाने से काम में व्यवधान ही बना रहेगा ? 
ऐसा न जाने कितने सवाल मेरे मन में आता-जाता रहा और हमने कई पुस्तकों का अध्ययन भी किया परन्तु हमें कहीं ऐसी जानकारी नहीं मिल पायी, वेद पुराणों को भी संक्षिप्त में पढ़ने का प्रयास किया परन्तु ऐसे नियम कहीं नहीं बताए गए । हमारी समझ से तो परे है हम ऐसी व्याख्या करने में अपने आप को सक्षम नहीं पाए इसका कारण यह था कि किसी शास्त्रीय पुस्तक में इसका कोई आधार नहीं मिला ।
हम आप लोगों के समक्ष पाठ इसलिए लिख रहे हैं कि आप रूचि रखने वाले लोग जो सिर्फ ये समझते हैं कि इतने लोकप्रिय ज्योतिषियों ने यह बताया तो जरूर आधार होगा । हमने कई ज्योतिषियों से इसके बारे में जानने का प्रयास किया पर किसी का उत्तर संतोषपूर्ण नहीं था एवं हमें हास्यास्पद लगा । 
आप ज्योतिष में गंभीर रूचि रखने वाले लोग भी इसका पड़ताल करें और कोई यथार्थ जानकारी प्राप्त हो तो हमें भी सूचित करें । तबतक ऐसे संवाद से बचें जो लोकप्रिय हैं वो विद्वान हो सकते  हैं इसमें संशय होता है, आप भी हमारी तरह जिज्ञासु हों ।
धन्यवाद !

ज्योतिषाचार्य पं. श्रवण झा “आशुतोष”
संपर्क - 9911189051, ashutoshastrometer@gmail.com
https://www.facebook.com/TruthsOfAstro/


Saturday 23 April 2016

TRUTHS OF ASTRO: ग्रहण दोष का गलत प्रचार

TRUTHS OF ASTRO: ग्रहण दोष का गलत प्रचार: नेशनल चैनल के साथ-साथ अन्य चैनलों पर भी जो बताया जाता है कि आपके पत्रिका में ग्रहण दोष लग गया क्या उसे मानना चाहिए ? क्या हमें ज्योतिष अंधे...

ग्रहण दोष का गलत प्रचार

नेशनल चैनल के साथ-साथ अन्य चैनलों पर भी जो बताया जाता है कि आपके पत्रिका में ग्रहण दोष लग गया क्या उसे मानना चाहिए ? क्या हमें ज्योतिष अंधेरे में रखकर अपने लाभ के लिए गलत बताते हैं या ऐसा हमारे शास्त्रों में लिखा है, आमलोगों को सबसे पहले समझना होगा कि आप लोग जो देखते या सुनते हैं क्या वही सच है । आज आपको बताएंगे कि ग्रहण दोष जो बताया जाता है उसका हकीकत क्या है ।
सूर्य या चन्द्रमा के साथ राहु या केतु को देखते ही ज्योतिष बताते हैं कि ग्रहण दोष लग गया और इसका उपाय कराना चाहिए ऐसा नहीं होता है । आप लोगों के जानकारी के लिए कहना चाहेंगे कि राहु व केतु के साथ चन्द्रमा महीने में दो बार युति करते हैं तो क्या युत हो जाने से ही ग्रहण दोष लग जाता है ऐसा नहीं होता है । ठीक उसी तरह सूर्य राहु व केतु के साथ वर्ष में दो माह के लगभग युत रहता है तो ग्रहण दोष लग जाता है उस दो मास सूर्य के साथ स्थित होने पर असंख्य लोगों का जन्म होता है तो क्या सभी को ग्रहण दोष लगता है या महीने में लगभग 4 या 5 दिनों के लिए चन्द्रमा राहु व केतु से युत होता है तो क्या उस दौरान जन्म लेने वाले सभी लोगों को ग्रहण दोष लग जाता है ऐसा नहीं होता । सूर्य ग्रहण दोष और चन्द्र ग्रहण दोष इस तरह से बताने वाले लोग आपके साथ धोखा करते हैं ।

ग्रहण दोष होता है जो शास्त्रों में वर्णित है जो हम श्लोक लिख रहे हैं वो मुहुर्त चिन्तामणी से है -
सूर्येन्दु ग्रहणे काले येषां जन्म भवेद द्विज ।
व्याधि कष्टं च दारिद्रयं तेषां मृत्यूभयं भवेत् ।।
अर्थात सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण काल के समय जिसका जन्म होता है सिर्फ उसको ही ग्रहण दोष लगता है ऐसे जातक के जीवन में व्याधि, कष्ट, दरिद्रता के साथ-साथ मृत्यु भय भी बना रहता है ।
लेकिन सिर्फ राहु व केतु के साथ युत होने मात्र से ग्रहण दोष नहीं लगता अपितु जिस समय चन्द्रग्रहण या सूर्य ग्रहण घटित हो रहा हो उस समय जन्म लेने वाले जातक को ही ग्रहण दोष कहना चाहिए ।
इस दोष से मुक्त होने के लिए साधारण उपाय हम बताते हैं जो शास्त्रानुकुल है इसको कर लेने के बाद मन से यह संशय भी निकाल देना चाहिए कि आगे जीवन में इसका कुप्रभाव होगा ।
तन्नक्षत्रपते रूपं सुवर्णेन प्रकल्पयेत् ।
सूर्यग्रहे सूर्य रूपं सुवर्णेन स्वशक्तितः ।।
चन्द्रग्रहे चन्द्ररूपं रजतेन तथैव च ।
राहुरूपं प्रकुर्वीत सीसकेन विचक्षणः ।।
सूर्य ग्र्रहण में जन्म हो तो - नक्षत्र के देवता, और सूर्य की सोने की प्रतिमा बनाकर,  चन्द्रमा के लिए चांदि की प्रतिमा बनाकर तथा राहु की सीसे की प्रतिमा बनाकर पवित्रता से तीनों को कलश के उपर स्थापित कर पूजन हवन किया जाना चाहिए ।
सूर्य ग्रहण में जन्म लेने पर नक्षत्र स्वामी, जिस नक्षत्र में जातक का जन्म हुआ हो, सूर्य की प्रतिमा तथा राहु की प्रतिमा का पूजन करना चाहिए ।
चन्द्र ग्रहण में जन्म लेने पर नक्षत्र स्वामी, जिस नक्षत्र में जातक का जन्म हुआ हो, चन्द्रमा की प्रतिमा तथा राहु की प्रतिमा का पूजन करना चाहिए ।
अभिषेकं  ततः कुर्यात जातस्य कलशोदकैः ।
आचार्यां पूजयेद् भक्त्या सुशान्तो विजितेन्द्रियः ।
ब्राह्मणान् भोजयित्वा तु यथाशक्ति विसर्जयेत् ।।
कलश के जल से जातक का अभिषेक करना चाहिए तथा यथाशक्ति ब्राह्मण का पूजन दक्षिणा व भोजन कराना चाहिए ।
आज के परिवेश में ज्योतिष को ही दोषों और टोटकों से सर्व प्रथम बचाना होगा -
ऐसे भ्रांतियों से बचना होगा ऐसे दोषों के लिए राहु और केतु को कारण माना गया है, कहा जाता है कि राहु केतु के साथ यदि कोई ग्रह हो तो उस ग्रह को ग्रहण लग जाता है, ग्रहण लग जाने का अर्थ उन ग्रहों के परिणामों की हानि बताते हैं
सूर्य के साथ हो तो सूर्य ग्रहण, चन्द्रमा के साथ हो तो चन्द्र ग्रहण ऐसे संवादों से सावधान रहना होगा ।
धन्यवाद !

विंशोत्तरी दशा फल कथन से पूर्व किन-किन बातों का ध्यान रखें


हम सभी जानते हैं कि 12 भाव होते हैं और उसमें स्थित राशि उस भाव के स्वामी होते हैं, यहां शुभ भाव के स्वामी अशुभ ग्रह भी होते हैं और अशुभ भाव के स्वामी शुभ ग्रह भी होते हैं उदाहरण के लिए मेष लग्न के लिए लग्न के साथ पंचम जो त्रिकोण स्थान होने के कारण शुभ हैं लेकिन मंगल एवं सूर्य नैसर्गिक रूप से अशुभ ग्रह हैं तथा तुला लग्न में तीसरे एवं छठे स्थान के स्वामी गुरू होते हैं गुरू नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह हैं लेकिन तीसरा एवं छठा स्थान अशुभ स्थान कहे गए हैं ।
यहां हम लोगों को तात्कालिक गुण की भी बात करनी होगी । यदि तात्कालिक रूप से अर्थात आपके लग्नानुसार जो शुभ ग्रह भी यदि अशुभ नाथ हो तो उस स्थान के फल उसी शुभ ग्रह को करना होगा । उसी प्रकार शुभ भाव के स्वामी यदि अशुभ ग्रह हों तो उस भाव की शुभता उसी अशुभ ग्रह से प्राप्त होगा ।
यहां समझना होगा कि भाव के स्वामित्व प्राप्त करने पर किसी भी ग्रह के कारकत्वों या गुणस्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं होता अपितु अपने गुणस्वरूप के आधार पर ही संबंधित भावों का शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं ।
हम सभी जानते हैं कि जीवनपर्यन्त आने वाले शुभाशुभ परिणामों के लिए भाव, भावेश तथा कारक को समझना होता है जो हमें लग्न चार्ट को देखकर तथा वर्गचार्ट से समर्थन प्राप्त कर मालुम होता है । उदाहरण के लिए विवाह होगा कि नहीं वैवाहिक जीवन कैसा होगा इसके लिए सप्तम भाव, सप्तमेश एवं कारक शुक्र के साथ-साथ स़्त्री जातक विशेष के लिए गुरू का अध्ययन कर समझ सकते हैं । लेकिन जब प्रश्न होगा कि विवाह कब होगा अर्थात समय निर्धारण की बात है किस वर्ष किस माह या किस दिन होगा इसके लिए हमेशा ज्योतिष में दशा के उपर निर्भर रहना होता है । यदि हमें लग्न चार्ट देखना आ गया तो हम यह समझ सकते हैं कि विवाह या वैवाहिक जीवन कैसा होगा परन्तु विवाह का समय निर्धारित करने के लिए दशा को समझना जरूरी होगा ।
यहां हम सर्व प्रथम आप लोगों को विंशोत्तरी दशा की चर्चा करेंगे जो प्रचलित होने के साथ-साथ विशेष स्पष्टता भी प्रदान करता है ।

हम जानते हैं कि दशा क्रम क्या होता है पुनः उसको दुहराते हैं -
आ - चम - भौ - रा - जी - श- बु - के- शु याद रखने में आसान होगा । यहां आ का मतलब आदित्य अर्थात सूर्य, चम का अर्थ चन्द्रमा, भौ का अर्थ भौम अर्थात मंगल, रा से राहु जी का मतलब जीव यहां गुरू को जीव भी कहा जाता है, श से शनि, बु से बुध, के से केतु और शु से शुक्र । यह भी जानते हैं कि जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में स्थित हो उसी नक्षत्र के स्वामी की शेष दशा प्राप्त होती है ।
यहां गणितीय पद्धति में समझते हैं कि यदि चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में जन्म के समय 3 अंश 20 कला भोग चुका हो तो चन्द्रमा की शेष 7.5 वर्ष की दशा प्राप्त होगी तथा चन्द्रमा के बाद मंगल और मंगल के बाद राहु की उपर जो क्रम बताया गया है उसी के अनुसार दशा क्रम जीवन पर्यन्त चलता रहेगा । यहां हमने महादशा की बात बतायी ।
विंशोत्तरी दशा पांच खंडों में बताया गया है - महादशा - अन्तदर्शा - प्रत्यन्तर्दशा - सूक्ष्म दशा तथा प्राण दशा । किसी भी ग्रह की महादशा होने पर उसी ग्रह की अंतर दशा प्राप्त होती है और पुनः दशा क्रम से अन्तर्दशा बदलती है । उदाहरण के लिए माना कि शुक्र की महादशा है तो शुक्र की अंतर्दशा प्राप्त होगी शुक्र की अंतर्दशा समाप्त होने पर क्रमशः सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, राहु, गुरू, शनि, बुध तथा केतु की आखरी अंतर्दशा शुक्र की महादशा में होगी । अंतर्दशा में प्रत्यन्तर दशा क्रम भी इसी अनुसार होगा साथ ही सुक्ष्म दशा और प्राण दशा का क्रम भी इसी नियम का पालन करता है ।
महादशा वर्ष भी यहां लिखना उचित होगा - सूर्य - 6 वर्ष, चन्द्रमा - 10 वर्ष, मंगल - 7 वर्ष, बुध - 17 वर्ष, गुरू - 16 वर्ष, शुक्र - 20 वर्ष, शनि - 19 वर्ष, राहु - 18 वर्ष तथा केतु की 7 वर्ष की महादशा होती है । महादशा में किन ग्रह की अंतर्दशा कितनी होगी इसको संक्षेप में समझते हैं -
उदाहरण के लिए शुक्र की महादशा में चन्द्रमा के अंतर्दशा वर्ष -
चूंकि 120 वर्ष की महादशा में 10 वर्ष की दशा प्राप्त होती है तो
शुक्र की 20 वर्ष की महादशा में कितने की वर्ष की
यहां संक्षेप में महादशा गुण अंतर्दशा भाग विंशोत्तरी दशा महीने में उत्तर के लिए 12 से गुणा करेंगे शेष रहने पर दिन निकालने के लिए 365 से गुणा करेंगे ।
सभी ग्रहों की अंतरदशा के लिए यही एकिक नियम लागु करेंगे । आसान है आपलोग भयात एवं भभोग की वैदिक प्रक्रिया से बच जाएंगे साथ ही आपके लिए समझना आसान हो जाएगा ।
इसका अभ्यास एक दो बार कर लेंगे तो आसान हो जाएगा समझना । वर्तमान समय में टेक्नोलोजी का सहारा लेकर आप दशा निकालने के झंझट से बचते हैं ।

दशओं को समझते हुए कहना चाहेंगे कि सूर्यादि ग्रह अर्थात राहु व केतु सहित नौ ग्रहों की दशा कही गयी है, जबकि राहु व केतु को राशियों का स्वामित्व नहीं दिया गया है लेकिन विंशोत्तरी दशा में राहु व केतु के दशा बताए गए हैं, पराशर में कहा गया है शनिवत् राहु, कुजवत् केतु इसलिए राहु की दशा 18 वर्ष की जो शनि की दशा से एक वर्ष कम है तथा केतु की दशा 7 वर्ष की जो मंगल की दशा के बराबर है।
जिन ग्रहों के पास अर्थात सूर्य से शनि तक को राशियों का स्वामित्व प्राप्त है इसलिए लग्नानुसार ये सभी ग्रह किसी न किसी भाव के स्वामी होते हैं लेकिन राहु व केतु किसी भाव के स्वामी नहीं कहे गये हैं तो इनके दशाओं के फल को स्पष्ट कैसे किया जाएगा -
- पहला तो नैसर्गिक गुण स्वरूप के आधार पर करना होगा
- दुसरा युति व दृष्टि के आधार पर करना होगा
- राहु केतु की पत्रिका में स्थिति अर्थात किस भाव में स्थित है उसका विचार करके करना होगा
- योगों का ध्यान रखकर करना होगा
- साथ ही लग्नानुसार शनि, बुध और शुक्र का लग्न हो तो इनके गुण शनि के गुण के अनुकुल हैं इसको समझकर करना होगा
मैंने राहु और केतु की चर्चा सबसे पहले इसलिए किया है कि आज वर्तमान समय में हमारे ज्योतिष ग्रहों का दशाफल भावपति होने के आधार पर ही करते हैं, जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए । भावपति होने के कारण उस भाव फल तो करेगा ही साथ ही अपने कारकत्वों का फल भी करेगा और शुभाशुभ परिणाम अपने बलाबल के अनुसार करेगा ।
शनि भाग्येश होकर तात्कालिक रूप से शुभ कहलाएगा लेकिन शनि अशुभ ग्रह है इसका भी ध्यान रखना होगा ये नियम सभी ग्रहों के उपर लागु होगा साथ ही कहना चाहेंगे कि सभी ग्रह परिणाम अपने गुणस्वरूप के आधार पर करते हैं इसको भी विशेष महतव देना होगा ।
आपलोगों को समझ में आ गया होगा कि राहु व केतु की चर्चा कर हम सिर्फ इतना बताना चाह रहे थे कि ग्रह तात्कालिक प्रभाव के कारण अपने नैसर्गिक गुणों को नहीं भूलते । दशा का पाठ लिखते समय हम कहना चाहेंगे कि आप लोग दुविधा में पड़ेंगे और असमंजस की स्थिति भी होगी कि हम क्या पढ़ रहे हैं इसका समाधान भी यहीं मिलेगा यदि आप निरंतर पढ़ते रहेंगे तो शायद आपका दुविधा समाप्त हो जाए ।

एक बात और सूर्यादि ग्रहों के दशा फल लिखने से पूर्व कहना चाहेंगे कि हम सभी जानते हैं कि ज्योतिषियों के प्रमुख अस्त्र 27 नक्षत्र, 9 गह, 12 राशियां ही हैं इन्हीं को समझने में 12 वर्ष का समय लग जाता है शास्त्रों में कहा गया है कि एक वेदांगों को पढ़ने में 12  वर्ष का समय लगता है और 6 वेदागों का यदि पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना हो तो आपका जीवन ही निकल जाएगा इसलिए हम कहेंगे पाठ पढ़ने के क्रम में स्वध्याय को न भूलें और अपने समाथ्र्य से भी कुछ न कुछ ज्योतिष संबंधी टेस्ट बुक पढ़ते रहें ।
यहां जो बताना है कि कालपूरूष की बात हम करते हैं और उदाहरण में समझिए कि कहते हैं कि कालपुरूष की पत्रिका के अनुसार मीन राशि द्वादश स्थान में स्थित होती है जहाँ शुक्र को उच्च का कहते हैं और इसलिए शुक्र को द्वादश जाने का दोष नहीं लगता अर्थात हमें यह समझना होगा कि कालपुरूष की पत्रिका को भी समझना और फलित के साथ-साथ दशाफल में भी इसका ध्यान रखना जरूरी होता है ।
कालपुरूष की पत्रिका कहीं शिव तो कहीं विष्णु का बताया जाता है आप अपनी समझ से समझें हम तो इतना कहेंगे की पहली राशि अर्थात मेष राशि के अनुसार जो भावों के स्वामित्व का निर्धारण होता है उसका भी ध्यान रखना बहुत है । यहां किसी भी पत्रिका को समझने के लिए कालपुरूष की पत्रिका और उसके अनुसार भावपति का भी ध्यान रखना उचित होता है ।
एक और बात को स्पष्ट करना चाहेंगे कि हम पराशर ज्योतिष को पढ़ते समय यह भी पढे़ हैं कि देश काला और परिस्थिति का भी ध्यान रखना चाहिए यदि आप इन बातों का ध्यान नहीं रखेंगे तो हमेशा फलित करने में भूल होगी इसलिए इस बात का भी ध्यान रखना होगा ।
इसके लिए सबसे पहले ये समझना जरूरी है जिस किसी का भी पत्रिका देख रहे हैं उसकी उम्र क्या है और वर्तमान समय में किस ग्रह की दशा है तथा पीछे किस ग्रह की दशा भोग चुका है साथ ही आने वाली दशा किस ग्रह की है और वह ग्रह कौन सा है इसके बाद ही ध्यान देना है कि संबंधित ग्रह किस भाव का स्वामित्व रखता है ।
एक और बात जिसका ध्यान रखना भी अनिवार्य है वो है जन्मकालीन दशा-अन्र्तदशा जिस तरह लग्न एवं राशि को आधार मानकर पत्रिका की विवेचना करते हैं उसी तरह जन्म के समय मिलने वाली दशा का भी ध्यान रखना चाहिए ।
अभी तक तो हम दशाफल से पूर्व ध्यान रखने योग्य बातों को बता रहे हैं इसका विशेष ध्यान रखना होगा यदि इसको समझे वगैर भावेश और ग्रह के गुण स्वरूप के अनुसार यदि फल कहेंगे तो हमेशा भूल होगी ।
हम और आप अपने हित तथा ज्योतिष के हित के लिए इस विषय को समझ रहे हैं बांकि तो उपाय करने वाले ही अच्छे ज्योतिष हैं जिनके लिए कहना आसान होता है कि हमने आपको यह उपाय बताया था आपने नहीं किया इसलिए ये परिणाम आये ।
कालपुरूष की पत्रिका बना कर उसी भाव में उसके स्वामी को लिखेंगे आप लोगों का परेशानी नहीं होनी चाहिए । 

Saturday 12 March 2016

भारत विश्व गुरू बन गया

कर्म सर्वोपरी है, कोई भी कर्म से विमुख होकर नहीं रह सकता और सभी लोग अपने-अपने ज्ञान एवं सामथ्र्य के अनुकुल कार्य करते रहते हैं, कर्मफल की बात नहीं करते क्योंकि श्री कृष्ण ने कहा है कर्मण्ये वाधिकारस्य मा फलेशु कदाचन् ..... लेकिन कर्म के विषय को समझते हैं सभी लोग कर्म के विषय में कुछ न कुछ जरूर जानते और बोलते हैं ठीक उसी तरह जिस तरह हम भी अपने ज्ञान के आधार पर कुछ लिखने बैठ गये और कर्म से ही प्रारंभ किया गीता में कर्मयोग नामक अध्याय है जिसे अनेक लोगों ने पढ़ा होगा और जिसने नहीं भी पढ़ा हो वे भी कर्म के विषय में जो कुछ भी कहते हैं वह उसी अध्याय में सिमट कर रह जाता है । आज हम आम लोग क्या कहते हैं उसी की चर्चा करते हैं - कहते हैं कर्म निष्ठापूर्वक करना चाहिए, कर्म इमानदारी से करना चाहिए, कर्म करने में पीछे नहीं रहना चाहिए, कर्म लगन के साथ करना चाहिए, कर्म को बोझ नहीं समझना चाहिए हम भी कहते हैं कि मन लगाकर कर्म करना चाहिए ...... । इसमें से किसी के कहे को मान लेने से हम सब सफल हो सकते हैं और भारत के संदर्भ में बात करें तो भारत विश्व गुरू बन सकते है ।
इसी तरह विद्वानों ने कर्म को अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग कर्म बताए हैं जिसमें संतों के लिए कुछ विशेष कर्म बताए होंगे । हम सभी लोग भी कुछ न कुछ सामाजिक परिवेश में रहकर समझते हैं कि प्रधानमंत्री के क्या करना चाहिए, संत को क्या करना चाहिए, व्यापारी को क्या करना चाहिए, विद्यार्थी को क्या करना चाहिए, महिलाओं को क्या करना चाहिए, पुरूषों को क्या करना चाहिए हमलोग तो विद्वानों एवं शास़़्त्रों से भी आगे जानते हैं कि हिन्दु को क्या करना चाहिए, मुसलमान को क्या करना चाहिए, अन्य धर्म वाले लोगों को क्या करना चाहिए, विभिन्न जाति के लोगों को क्या करना चाहिए आदि ।
हमारे साथ सारे भारतीयों का यह सपना है कि भारत विश्व गुरू बने और उसके लिए प्रधानमंत्री प्रयास रत हैं अपने कर्मों के दम पर । हमारे संत लोग भी विश्व गुरू बनने का प्रयास करते हैं अपने ज्ञान के दम पर ।
हमलाग सभी जानते हैं कि एक दुसरे की भाषा समझना कितना मुश्किल होता है और भारत तो विविधताओं वाला देश है सभी जानते हैं कि कोश मात्र के अन्तराल में भाषा या कहें बोली बदल जाती है जिसे समझना मुश्किल हो जाता है हम अपने ही देश में विभिन्न संस्कृतियों को भी संभाले हुए हैं । जिसकी वजह से कभी-कभी घोर संकट से भी गुजरना पड़ता है । लेकिन ये दुस्साहस भी भारतीय ही कर सकते हैं ।
किसी भी आयोजन का कोई न कोई मकसद होता है आम लोगों के समझ में नहीं आ रहा कि श्रीश्री रविशंकर के द्वारा कराये जा रहे इस भव्य आयोजन का मकसद क्या है ? उन्होंने कुछ बताया जरूर है पर आम लोग शायद ही समझ पाएंगे और जो प्रधान मंत्री जी ने बताया वो तो ब्रांड का प्रचार मात्र था ऐसा समझ में आया कि आर्ट आॅफ लिविंग क्या है और समापन दिवस पर केजरीवाल जी धन्यवाद में क्या कहेंगे ये भी पूर्व में सबको ज्ञात है कि अब हमें भी आर्ट आॅफ पोलिटिक्स आ गया ।

क्या एक प्रतिष्ठित संत के कर्म के अनुकुल है ये कार्यक्रम ? आपको सोचना है इसका फायदा और नुकशान भी आपको सोचना है इसकी अधिक जानकारी आपको मीडिया के माध्यम से बहुत कुछ मिलेगा आप अपना समय बर्बाद कर श्रीश्री और उनके भव्य कार्यक्रम और विश्व महिमामंडण को समझने का प्रयास करें ।.................
आज जो हमें समझ में आया कि प्रधान मंत्री जी का एक वादा कि हम विश्व गुरू बनेंगे हम उसकी ओर प्रयास रत हैं अब भारत को विश्व के लोग सम्मान से देखने लगे हैं यह सपना हम भारतीयों का पुरा हुआ । भारत विश्व गुरू बन गया गुरू के रूप में श्रीश्री को श्रेय देना चाहिए और सरकार के रूप में मोदी जी को ............
हमें बहुत कुछ करना है हमारे आम लोग कहते हैं कोई गुरू खाने नहीं देगा सरकार का रोज नया भाषण कल भी सुनने मिलेगा आज इतना ही समय बर्बाद कर सकते थे जो किया आपने भी यदि पुरा पढ़ लिया तो समझ ही गए होंगे हमारे समझ से तो जो लिखा वो शीर्षक मात्र है ।