वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया को ही अक्षय तृतीया के रूप में मनाते हैं । अक्षय का अर्थ ही होता है जिसका कभी क्षय नही होता। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की गणना युगादि तिथियों होती है । ऐसी मान्यता है कि इसी तिथि को कभी सतयुग और त्रेतायुग का प्रारम्भ हुआ था। तृतीया तिथ के साथ कृतिका या रोहिणी नक्षत्र हो और बुधवार या सोमवार दिन हो तो विशेष रूप से प्रशस्त माना गया है । अक्षय तृतीया के दिन सनातन धर्म को मानने वाले स्नान दान यज्ञ आदि किया करते हैं ताकि उनके द्वारा किये कार्य से प्राप्त शुभ का क्षय नहीं हो ।
अक्षय तृतीया की ही तिथि को भगवान बद्रीनाथ के कपाट खोले जाते है। इस वर्ष तो महाकुंभ के शाही स्नान की तिथि भी अक्षय तृतीया के दिन निश्चित है । इस वर्ष 09 मई दिन सोमवार को मृगशिरा नक्षत्र में एंव सुकर्मा योग में अक्षय तृतीया पड़ रही है। अक्षय तृतीया को किसी कार्य को करने के लिए पंचाग शुद्धि की आवश्यकता नहीं होती परन्तु इस वर्ष शुक्र के अस्त होने के कारण विवाह आदि के मुहुर्त नहीं बताए गए हैं साथ ही ऐसे कार्य जिससे भौतिक सुख-सुविधा का बोध हो उसे भी वर्जित कहा गया है ।
शुक्र ग्रह के अस्त होने पर जो त्याज्य कर्म शास्त्रों में बताए गए हैं गृहप्रवेश, शिलान्यास, कूपारम्भ, तालाब एवं उपवन, वधू प्रवेश तथा द्विरागन आदि । किसी भी व्रत का उद्यापन, अष्टका श्राद्ध, गोदान, बालकों के जातक कर्म, नामकरण संस्कार, कर्णभेदन, देवस्थापाना, मन्त्र दीक्षा, मुण्डन, उपनयन, सन्यास ग्रहण, राज का दर्शन आदि के लिए मना किया जाता है
आजकल के परिावेश में सोने-चांदि, रत्नादि के खरीदने का प्रचलन है क्योंकि रत्नादि के मूल्यों का भी क्षय नहीं होता और ये सदैव मुल्यवान होने के साथ-साथ अक्षय होते हैं । जबकि हमें अपने पुण्य कर्मों से प्राप्त शुभ फल की चिंता करनी चाहिए और पुण्य कर्म करने चाहिए । वैशाख में छतरी एवं जल दान तथा शीतल जल हेतु घड़ा आदि का दान कहा गया है । अक्षय तृतीया के दिन पनसाला आदि की व्यवस्था मासभर के लिए करने से पुण्य फल के भागी होते हैं
कहा भी गया है -
अष्टादश पुराणेशु व्यासस्य वचन द्वयम् ।
परोपकाराय पुण्याय पापाय पर पीडनम ।।
अक्षय तृतीया के दिन परोपकार करने से प्राप्त पुण्य का कभी क्षय नहीं होगा ।
अक्षय तृतीया को पड़ने वाले योग -
सर्वार्थ सिद्धि -
सूर्योदय से लेकर रात्रि 12 बजकर 08 मि. तक होगा ।
सर्वार्थ सिद्धि योग -
सूर्योदय से लेकर रात्रि 12 बजे तक अमृत सिद्धि योग रहेगा।
खरीद्दारी के शुभ मुहूर्त -
अमृतसिद्धमुहुर्त का चयन रत्नादि की खरीद के लिए कर सकते हैं जिसमें स्थानीय समायनुसार दोपहर 12 बजे से 48 मिनट पूर्व एवं पश्चात के समय का चयन करने से आप अभिजित मुहुर्त का भी पालन कर लेते हैं । साधारण रूप से कहना चाहें तो अक्षय तृतीया की तिथि में किसी मुहुर्त आदि का विशेष महत्व नहीं है ।
कुछ लोकप्रिय जन टेलिविजन पर कहते नजर आ रहे हैं कि इस बार की अक्षय तृतीया अक्षय नहीं होगी ऐसे संवाद से बचें विवाह आदि जो उपर आपको बताया गया है उसके लिए अलग से निर्णय लिया जाता है इसलिए मिथ्या प्रलाप से बचना जरूरी है । अक्षय तृतीया उतनी ही अक्षय है आपके द्वारा किये पुण्य कर्म या रत्नादि के खरीद के लिए शुभ है ।
धन्यवाद !
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