नेशनल चैनल के साथ-साथ अन्य चैनलों पर भी जो बताया जाता है कि आपके पत्रिका में ग्रहण दोष लग गया क्या उसे मानना चाहिए ? क्या हमें ज्योतिष अंधेरे में रखकर अपने लाभ के लिए गलत बताते हैं या ऐसा हमारे शास्त्रों में लिखा है, आमलोगों को सबसे पहले समझना होगा कि आप लोग जो देखते या सुनते हैं क्या वही सच है । आज आपको बताएंगे कि ग्रहण दोष जो बताया जाता है उसका हकीकत क्या है ।
सूर्य या चन्द्रमा के साथ राहु या केतु को देखते ही ज्योतिष बताते हैं कि ग्रहण दोष लग गया और इसका उपाय कराना चाहिए ऐसा नहीं होता है । आप लोगों के जानकारी के लिए कहना चाहेंगे कि राहु व केतु के साथ चन्द्रमा महीने में दो बार युति करते हैं तो क्या युत हो जाने से ही ग्रहण दोष लग जाता है ऐसा नहीं होता है । ठीक उसी तरह सूर्य राहु व केतु के साथ वर्ष में दो माह के लगभग युत रहता है तो ग्रहण दोष लग जाता है उस दो मास सूर्य के साथ स्थित होने पर असंख्य लोगों का जन्म होता है तो क्या सभी को ग्रहण दोष लगता है या महीने में लगभग 4 या 5 दिनों के लिए चन्द्रमा राहु व केतु से युत होता है तो क्या उस दौरान जन्म लेने वाले सभी लोगों को ग्रहण दोष लग जाता है ऐसा नहीं होता । सूर्य ग्रहण दोष और चन्द्र ग्रहण दोष इस तरह से बताने वाले लोग आपके साथ धोखा करते हैं ।
ग्रहण दोष होता है जो शास्त्रों में वर्णित है जो हम श्लोक लिख रहे हैं वो मुहुर्त चिन्तामणी से है -
सूर्येन्दु ग्रहणे काले येषां जन्म भवेद द्विज ।
व्याधि कष्टं च दारिद्रयं तेषां मृत्यूभयं भवेत् ।।
अर्थात सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण काल के समय जिसका जन्म होता है सिर्फ उसको ही ग्रहण दोष लगता है ऐसे जातक के जीवन में व्याधि, कष्ट, दरिद्रता के साथ-साथ मृत्यु भय भी बना रहता है ।
लेकिन सिर्फ राहु व केतु के साथ युत होने मात्र से ग्रहण दोष नहीं लगता अपितु जिस समय चन्द्रग्रहण या सूर्य ग्रहण घटित हो रहा हो उस समय जन्म लेने वाले जातक को ही ग्रहण दोष कहना चाहिए ।
इस दोष से मुक्त होने के लिए साधारण उपाय हम बताते हैं जो शास्त्रानुकुल है इसको कर लेने के बाद मन से यह संशय भी निकाल देना चाहिए कि आगे जीवन में इसका कुप्रभाव होगा ।
तन्नक्षत्रपते रूपं सुवर्णेन प्रकल्पयेत् ।
सूर्यग्रहे सूर्य रूपं सुवर्णेन स्वशक्तितः ।।
चन्द्रग्रहे चन्द्ररूपं रजतेन तथैव च ।
राहुरूपं प्रकुर्वीत सीसकेन विचक्षणः ।।
सूर्य ग्र्रहण में जन्म हो तो - नक्षत्र के देवता, और सूर्य की सोने की प्रतिमा बनाकर, चन्द्रमा के लिए चांदि की प्रतिमा बनाकर तथा राहु की सीसे की प्रतिमा बनाकर पवित्रता से तीनों को कलश के उपर स्थापित कर पूजन हवन किया जाना चाहिए ।
सूर्य ग्रहण में जन्म लेने पर नक्षत्र स्वामी, जिस नक्षत्र में जातक का जन्म हुआ हो, सूर्य की प्रतिमा तथा राहु की प्रतिमा का पूजन करना चाहिए ।
चन्द्र ग्रहण में जन्म लेने पर नक्षत्र स्वामी, जिस नक्षत्र में जातक का जन्म हुआ हो, चन्द्रमा की प्रतिमा तथा राहु की प्रतिमा का पूजन करना चाहिए ।
अभिषेकं ततः कुर्यात जातस्य कलशोदकैः ।
आचार्यां पूजयेद् भक्त्या सुशान्तो विजितेन्द्रियः ।
ब्राह्मणान् भोजयित्वा तु यथाशक्ति विसर्जयेत् ।।
कलश के जल से जातक का अभिषेक करना चाहिए तथा यथाशक्ति ब्राह्मण का पूजन दक्षिणा व भोजन कराना चाहिए ।
आज के परिवेश में ज्योतिष को ही दोषों और टोटकों से सर्व प्रथम बचाना होगा -
ऐसे भ्रांतियों से बचना होगा ऐसे दोषों के लिए राहु और केतु को कारण माना गया है, कहा जाता है कि राहु केतु के साथ यदि कोई ग्रह हो तो उस ग्रह को ग्रहण लग जाता है, ग्रहण लग जाने का अर्थ उन ग्रहों के परिणामों की हानि बताते हैं
सूर्य के साथ हो तो सूर्य ग्रहण, चन्द्रमा के साथ हो तो चन्द्र ग्रहण ऐसे संवादों से सावधान रहना होगा ।
धन्यवाद !
सूर्य या चन्द्रमा के साथ राहु या केतु को देखते ही ज्योतिष बताते हैं कि ग्रहण दोष लग गया और इसका उपाय कराना चाहिए ऐसा नहीं होता है । आप लोगों के जानकारी के लिए कहना चाहेंगे कि राहु व केतु के साथ चन्द्रमा महीने में दो बार युति करते हैं तो क्या युत हो जाने से ही ग्रहण दोष लग जाता है ऐसा नहीं होता है । ठीक उसी तरह सूर्य राहु व केतु के साथ वर्ष में दो माह के लगभग युत रहता है तो ग्रहण दोष लग जाता है उस दो मास सूर्य के साथ स्थित होने पर असंख्य लोगों का जन्म होता है तो क्या सभी को ग्रहण दोष लगता है या महीने में लगभग 4 या 5 दिनों के लिए चन्द्रमा राहु व केतु से युत होता है तो क्या उस दौरान जन्म लेने वाले सभी लोगों को ग्रहण दोष लग जाता है ऐसा नहीं होता । सूर्य ग्रहण दोष और चन्द्र ग्रहण दोष इस तरह से बताने वाले लोग आपके साथ धोखा करते हैं ।
ग्रहण दोष होता है जो शास्त्रों में वर्णित है जो हम श्लोक लिख रहे हैं वो मुहुर्त चिन्तामणी से है -
सूर्येन्दु ग्रहणे काले येषां जन्म भवेद द्विज ।
व्याधि कष्टं च दारिद्रयं तेषां मृत्यूभयं भवेत् ।।
अर्थात सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण काल के समय जिसका जन्म होता है सिर्फ उसको ही ग्रहण दोष लगता है ऐसे जातक के जीवन में व्याधि, कष्ट, दरिद्रता के साथ-साथ मृत्यु भय भी बना रहता है ।
लेकिन सिर्फ राहु व केतु के साथ युत होने मात्र से ग्रहण दोष नहीं लगता अपितु जिस समय चन्द्रग्रहण या सूर्य ग्रहण घटित हो रहा हो उस समय जन्म लेने वाले जातक को ही ग्रहण दोष कहना चाहिए ।
इस दोष से मुक्त होने के लिए साधारण उपाय हम बताते हैं जो शास्त्रानुकुल है इसको कर लेने के बाद मन से यह संशय भी निकाल देना चाहिए कि आगे जीवन में इसका कुप्रभाव होगा ।
तन्नक्षत्रपते रूपं सुवर्णेन प्रकल्पयेत् ।
सूर्यग्रहे सूर्य रूपं सुवर्णेन स्वशक्तितः ।।
चन्द्रग्रहे चन्द्ररूपं रजतेन तथैव च ।
राहुरूपं प्रकुर्वीत सीसकेन विचक्षणः ।।
सूर्य ग्र्रहण में जन्म हो तो - नक्षत्र के देवता, और सूर्य की सोने की प्रतिमा बनाकर, चन्द्रमा के लिए चांदि की प्रतिमा बनाकर तथा राहु की सीसे की प्रतिमा बनाकर पवित्रता से तीनों को कलश के उपर स्थापित कर पूजन हवन किया जाना चाहिए ।
सूर्य ग्रहण में जन्म लेने पर नक्षत्र स्वामी, जिस नक्षत्र में जातक का जन्म हुआ हो, सूर्य की प्रतिमा तथा राहु की प्रतिमा का पूजन करना चाहिए ।
चन्द्र ग्रहण में जन्म लेने पर नक्षत्र स्वामी, जिस नक्षत्र में जातक का जन्म हुआ हो, चन्द्रमा की प्रतिमा तथा राहु की प्रतिमा का पूजन करना चाहिए ।
अभिषेकं ततः कुर्यात जातस्य कलशोदकैः ।
आचार्यां पूजयेद् भक्त्या सुशान्तो विजितेन्द्रियः ।
ब्राह्मणान् भोजयित्वा तु यथाशक्ति विसर्जयेत् ।।
कलश के जल से जातक का अभिषेक करना चाहिए तथा यथाशक्ति ब्राह्मण का पूजन दक्षिणा व भोजन कराना चाहिए ।
आज के परिवेश में ज्योतिष को ही दोषों और टोटकों से सर्व प्रथम बचाना होगा -
ऐसे भ्रांतियों से बचना होगा ऐसे दोषों के लिए राहु और केतु को कारण माना गया है, कहा जाता है कि राहु केतु के साथ यदि कोई ग्रह हो तो उस ग्रह को ग्रहण लग जाता है, ग्रहण लग जाने का अर्थ उन ग्रहों के परिणामों की हानि बताते हैं
सूर्य के साथ हो तो सूर्य ग्रहण, चन्द्रमा के साथ हो तो चन्द्र ग्रहण ऐसे संवादों से सावधान रहना होगा ।
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