Tuesday, 6 December 2016

शून्य से शून्य


सबसे पहले तो माननीया स्व0 जयलतिता जी को हृदय से श्रद्धांजली, इश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें । कुछ तो बात रही होगी उनके व्यक्तित्व में जो जनसैलाव भावुक होकर उनके अंतिम दर्शन को उमड़े । मैंने भी टक-टकी लगाकर उनके अंतिम यात्रा को टेलिविजन के माध्यम से देखता रहा और सोचता रहा कि अम्मा ने क्या पाया और क्या खोया, हम सभी जानते हैं कि सबको एक दिन शून्य में समा जाना है फिर भी हाय-हाय के शोर से बचा नहीं जा सकता ।
आज तो अम्मा जी के 68 साल का सफर शून्य से शून्य तक को ही कहना उचित होगा । सभी जानते हैं उनके बारे में कि जब पिता क्या होता है और क्यूं होता है तब दो साल की छोटी उम्र में पिता का साया सिर से उठ गया यह भी एक शून्य ही था उनके जीवन में । माता के लाड-प्यार के साथ बचपन गुजरता लेकिन मां कि व्यस्तता भी उनके जीवन में शून्य की तरह रहा । दसवीं की पढ़ाई तक अव्वल रहने वाली छात्रा अपने मनोनुकुल शिक्षा ग्रहण न कर पायी यह भी एक शून्य था । हम अमीर हैं ऐसे ख्वाब थे लेकिन अमीरी को कायम रखने के लिए कम उम्र में ही काम करना पड़ा क्या ये शून्य नहीं था । न चाहते हुए भी फिल्म में ही करियर बनना पड़ा यह भी जीवन में शून्यता को ही दर्शाता है । जिस क्षेत्र में कार्यरत थी और जितनी खुबसुरत थीं कि दोस्तों की कमी नहीं रही होगी लेकिन कोई हमसफर नहीं हो सका क्या इसको शुन्य नहीं कहेंगे । दत्तक पुत्र को प्यार दिया और उसकी शादि की चर्चा गिनीज बुक के रिकार्ड में दर्ज हुआ और वह पुत्र भी साथ छोड़ गया यहां भी शून्य ही है । एमजीआर का सहारा मिला पर साथ नहीं, उनके देहान्त के बाद की दशा और उस शून्य को तो शायद अम्मा याद भी न रखना चाहती होगी । 
जीवन शुन्य था धन-दौलत की आवश्यक्ता जरूरत से अधिक की न थी फिर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे और सांसारिक चमक को छोड़कर जेल जाना पड़ा क्या ये शून्य नहीं था ? गहनों की शौकिन थी इश्वर की कृपा से किलो की मात्रा में गहने प्राप्त थे फिर भी गहना पहनने से तौबा करना पड़ा यह भी शून्य ही था ।
सीएम की कुर्सी मिलती रही और छुटती भी रही रंगीन संसार के शून्य में रहने वालों की सोच उनके जीवन में तभी तो आया और उस शून्य में रहने वाले गरीबों के लिए जो कुछ भी किया वही तो उनका पुण्य बना और अंतिम समय में अपोलो में सिर्फ शशिकला जैसी दोस्त का सहारा मिलता रहा और अंततोगत्वा पृथ्वी के शून्य में समा गयी ।

बचपन में उत्साह रहे होंगे, जवानी में जोश रहे होंगे, पद का गुमां भी रहा होगा लेकिन शून्य से आये शून्य का साथ रहा और शून्य में विलीन हो गयी ।
हमें आपको समझना चाहिए और हाय-हाय का शोर कम करना चाहिए ।
अम्मा को पुनः नमन के साथ हार्दिक श्रद्धांजली जिन्होंने हमें अपने वर्तमान जीवन को समझने के लिए प्रेरित किया ।

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