उत्तर पूर्व भारत में सौभाग्य प्राप्ति हेतु विशेष रूप से मनाया जाने वाला व्रत वटसावित्री के तिथि निर्धारण एवं शास्त्रोक्त निर्णय ।
एक बात तो स्पष्ट होता है कि ज्ञान के आभाव और ज्ञान के दंभ के कारण हमारे पारिवारिक, सामाजिक एवं वैश्विक हित का बड़ा नुकशान होता है । आज चर्चा तो बटसावित्री व्रत की बात करेंगे ब्राह्मण या विद्वान ज्योतिषीय के द्वारा पंचाग आधारित व्रत किस तिथि को मनाया जाय इसमें भेद होता है जबकि हमारे शास्त्रों में भेद का कोई स्थान नहीं है, सबसे पहले वो गृहणियां जो इस व्रत को करती हैं वो अपने-अपने सूत्र से जानकारी एकत्रित कर खुद असमंजश की स्थिति में होती हैं और अपने-अपने आधार को पुख्ता मानकर व्रत को करती हैं । आज हमारे पास ये लिखने कारण है कि गृहणियों द्वारा लिए गऐ अपने-अपने सूत्र से व्रत हेतु निर्णय का समर्थन प्राप्त करने के लिए प्रश्न आया शुक्र है मैं उनसबों को समझाने में सफल हुआ लेकिन प्रश्न वहीं स्थिर है कि ऐसी परिस्थितियां क्यों उत्पन्न होती है । क्या इसके लिए हम ज्ञानी ही जिम्मेवार हैं तो इसका सामना भी सरल स्वभाव से हमलोगों को ही करना होगा ।
तिथि केप्लर सिद्धान्त पर नहीं चलता यहां सूर्य एवं चन्द्रमा के गति पर आधारित होने के कारण एक निश्चित समय में प्रारंभ और अंत नहीं होता इसलिए उदया तिथि की विशेष मान्यता होती है जो एक मोटी जानकारी है इसके कारण ही संशय उत्पन्न होता है, लेकिन ये अंतिम सत्य नहीं होता अगल-अलग व्रत के लिए अलग-अलग निर्णय लेने होते हैं जो शास्त्रों में वर्णित है । प्रसंग लंबा हो जाएगा इसलिए वट सावित्री के ही विषय में बात करते हैं -
वटसावित्री व्रत निर्णय शास्त्रोक्त -
वटसावित्री व्रत पूजाविधौ ज्येष्ठामावास्या सम्भवे चतर्दशी विद्धैव ग्राह्या प्रतिपदायुतायाः निषेधात् ।
यहां स्पष्ट है कि चतुदर्शी सहित अमावश ही ग्राह्य है न कि प्रतिपदा सहित । यहां किसी संशय को जगह नहीं दिया गया है ।
वर्ष 2016 में ज्येष्ठ अमावश जो चतुर्दशी सहित है 04.06.2016 दिन शनिवार इसलिए व्रत को इसी दिन मनाना उचित होगा ।
यहां जब चतुर्दशी सहिता अमावश को मनाया जाय तो समय निर्धारण न करते हुए निःसंदेह दिनपर्यन्त तक मनाया जाय ।
शास्त्रानुसार 05.06.2016 दिन रविवार को निषेध कहेंगे ।
स्कन्ध पुराण में वर्णित वटसावित्री व्रत में ब्रह्मा एवं सावित्री के पूजन का विधान बताया गया है । इस व्रत को करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है । पति की लंबी आयु एवं पिता के चिर साम्राज्य तथा कुलोन्नत्ति तथा जन्मजन्मांतर तक सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है ।
स्कन्ध पुराण में वर्णित पतिव्रता सावित्री एवं सत्यवान की कथा का स्मरण करना चाहिए । विवाहिता स्त्री आज के दिन ब्रह्मा एवं सावित्री की पूजा करती हैं । सावित्री-सत्यवान की कथा को पढ़ती या सुनती हैं साथ ही वटवृक्ष की पूजा, वटवृक्ष की परिक्रमा आदि का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है । व्रत के सभी विधान वटवृक्ष के नजदीक ही करने का विधान है ।
कथा सभी जानते हैं हमारा प्रयास तो सिर्फ आप सभी का संशय दुर करना था ।
ज्योतिषाचार्य पं. श्रवण झा “आशुतोष”
संपर्क - 9911189051, ashutoshastrometer@gmail.com
https://www.facebook.com/TruthsOfAstro/
No comments:
Post a Comment
Lot of thanks