Sunday 29 October 2017

Wednesday 25 October 2017

आन्दोलन से निकले नेता की जात नहीं होती


हम लोग सभी यह सुनते रहते हैं कि कुत्तों की भी जात होती है, हम लोग तो इन्सान ही हैं बिना जात के अपनी पहचान नहीं । सौभाग्य और दुर्भाग्य दोनों जात से ही जुड़ जाता है । कोई कहता है कि मैं ब्राह्मण हूँ कर्म चाहे किसी भी प्रकार का हो यह उसका सौभाग्य हुआ और कोई कितना भी विद्वान क्यों न हो वह दलित है तो यह उसका दुर्भाग्य है जबकि गीता में श्री कृष्ण ने स्पष्ट रूप से कहा है -
ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परन्तपः ।
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः ।।
हे परंतप! ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्रों के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों द्वारा ही उनके वर्णों को विभक्त किया गया है ।
लेकिन हम या हमारे पूर्वज जिन्होंने भी जाति प्रथा को शास्त्रों की आढ़ में बढ़ावा दिया है वह कोटि वर्षों से नरक के भोगी होंगे तथा जो कोई भी आज के दिन इसका लाभ प्राप्त करने तथा मानवता को तोड़ने का हमेशा प्रयास करते हैं उसे भी जन्म-जन्मांतर तक नरक भोगना पड़ेगा ।
अब हम यहां कहना चाहेंगे ऐसे लोग संविधान का हनन करते हैं कि नहीं,  नहीं पता लेकिन सनातन सत्य को नकारते हैं, पाप लगेगा घोर पाप ।
हम पूर्वजों द्वारा प्रतिपादित (न कि शास्त्रों द्वारा ) नियमों के अनुसार ब्राह्मण हूँ इसका गर्व कभी नहीं हुआ लेकिन कभी न कभी इसका नुकसान जरूर हुआ है । हम जानते हैं हर किसी जाति के लोगों को अपनी जाति के नाम पर कभी न कभी नुकशान जरूर हुआ होगा । मान लिया कि दलितों को आरक्षण के आधार पर नौकरी मिली होगी लेकिन दलित होने का दुःख भी कभी न कभी जरूर हुआ होगा ।
बात कर लेते हैं वर्तमान राजनीति की हम जाति की बात नहीं करेंगे विकास की बात करेंगे लेकिन विकास की बात तभी धरातल पर होगी जब आप जातिगत आधार पर हमें बोट देकर सत्ता में लेकर आएंगे ।
भारत वर्ष में ही नहीं परन्तु सारा संशार इससे अछुता नहीं है कहीं जाति का दोष विद्यमान है तो कहीं रंगों का भेद तो कहीं सम्प्रदाय रूपी राक्षस । मानवतावादी लोगों की कमी नहीं लेकिन ऐसे लोगों को तो मोक्ष चाहिए वो कुछ बोलेंगे नहीं ?
ऐसे मोक्ष भी नहीं मिलेगा आपको भी पाप लगेगा आप भी नरक के ही भागी होंगे । 
यह दोष जबतक समाप्त नहीं होगा किसी को मोक्ष नहीं मिलेगा । सब पापी कहलाएंगे । 
इसलिए जाति की बात छोड़ मानवता की राह पकड़नी होगी ।


आन्दोलन वाले नेता बात तो इन्सानियत की करेंगे मानवता वादी होने का दम भरेंगे लेकिन अपनी-अपनी तथा कथित जाति में मिलकर अपने भाग्य का निर्माण करेंगे जबकि अंततः वह भी नरक के भागी होंगे ।
आप सभी स्वतंत्र हैं गांधी, जयप्रकाश, अन्ना, पटेल, गुर्जर, जाट आदि आंदोलनों के नेता पर एक नजर डाल लें आपका ज्ञानवर्धन होगा और समाज के साथ-साथ देश का भी कल्याण होगा ।

Sunday 26 March 2017

शिक्षा के वगैर विकास की कल्पना


सरकार एवं सरकार के कामों की सराहना करते हैं उसकी नीति और नियति पर संदेह भी नहीं करते, नियमित रूप से भारी बहुमत से विजयी हों इसकी कामना भी करते हैं लेकिन समस्यओं का समाधान कैसे हो, विकास की बात भौतिक सुविधाओं के विकास से संभव है, शिक्षा भी क्या व्यापारियों से अनाप-सनाप रूपये खर्च कर प्राप्त करने होंगे ।
विकास तो होगा मगर शिक्षा के वगैर कैसे ? प्रश्न है पर उत्तर नहीं मिलता क्योंकि स्कुल तो है पर मुल-भूत सुविधाओं का अभाव है साथ आबादी के अनुसार स्कुलों की भी कमी है । सरकारी शिक्षा का स्तम्भ इतना कमजोर हो गया है कि उसको ठीक करने के लिए उतनी ही ताकत की जरूरत है जितनी ताकत वर्तमान में भाजपा सरकार को सभी प्रान्तों में सरकार बनाने में लग रही है ।

क्या सरकारी शिक्षा के विकास के लिए कोई अमित साह सरीखे रणनीति कार आएगा ? 
क्या शिक्षा में सुधार होगा ?
क्या पारा शिक्षक, शिक्षा मित्र आदि के जगह पर योग्य शिक्षक मिलेंगे ? 
शिक्षा के लिए उपर्युक्त माहौल बनेगा ? 
मुल-भूत सुविधाओं पर ध्यान दिया जा सकता है ?
क्या सभी बच्चों को स्कुल तक लाया जा सकता है ? 
क्या सभी वर्गों के बच्चों को समान शिक्षा का अधिकार नहीं है ?
क्या दलित, शोषित, बंचित आदि के बच्चों को शिक्षित कर राष्ट्र निर्माण की बात नहीं सोची जा सकती ?
क्या मध्यान भोजन देने से शिक्षा और कुपोषण दोनों का समाधान हो गया ?
ऐसे अनेकों प्रश्न है लेकिन चुनाव प्रचार एवं सरकार की नीति में इसके संकेत भी नहीं प्राप्त होते । जब नीति ही नहीं है तो उसके निर्धारण की बात क्या होगी जबकि सभी शिक्षित लोग ये जरूर जानते हैं कि शिक्षा ही समस्याओं का समाधान है चाहे वह कश्मीर में आतंकवाद की समस्या हो, अन्य प्रान्तों में माओबाद, नक्सलवाद, आरक्षण, धार्मिक उन्माद, ऊँच-नीच आदि । 
हम सभी जानते हैं हमारे देश में सरकारी शिक्षा की हालत इतनी खराब है कि प्राइवेट शिक्षा प्रणाली हमारे देश में फल-फुल रहा है और नित्य नए स्कुल या उसकी शाखाओं का विस्तार हो रहा है । फिर भी उन व्यापारियों का धन्यवाद कि पैसे लेकर तो शिक्षा दे रहा है ।
हम अपने मुल अधिकार को प्राप्त करने के लिए सफल व्यापारियों के हाथों कब और कैसे बिक गए पता भी नहीं चला । अब तो ये रोग गहरा होते जा रहा है । समाज में इससे उत्पन्न विषमताओं को भी आगे झेलना होगा हम जो बीज बो रहे हैं उसका फल कड़वा होगा । हम जिस विकास की बात कर रहे हैं वो हमें कभी प्राप्त नहीं होगा ।
हम आंकड़ों की जाल में सरकार की तरह नहीं फंसना चाहते कि जनसंख्या कितनी है कितने लोग शिक्षा से बंचित रह जाते हैं आदि । शिक्षकों के आभाव में जो शिक्षा दिया जा रहा है वह कितना असरदार होगा । 
कदाचार की चर्चा मिडिया में आम है लेकिन उसके कारण की बात कौन सोचता और जब कारण की बात  नहीं सोचेंगे तो निवारण कैसे संभव होगा ।
आज सिर्फ सरकार एवं सरकारी तंत्र को इस प्रश्न पर विचार करने के लिए कहना चाहते हैं । क्या लिखें और कितना लिखें रामायण से भी बड़ा लेख संभव है लेकिन दुःख इस बात का है कि राजा सिर्फ सम्राज्य विस्तार की बात सोचेगा या हमारे अधिकारों की रक्षा करते हुए समस्यओं से निजात दिला पाएगा । 
ये लेख नहीं पूर्ण रूप से लेख का शीर्षक भी नहीं है प्राथमिक शिक्षा का बुरा हाल है तो उच्चशिक्षा के विषय में सोचना ही व्यर्थ है ।


Thursday 2 March 2017

गुरमेहर युद्ध होगा और निश्चित होगा

गुरमेहर युद्ध होगा और निश्चित होगा इसे टाला नहीं जा सकता ज्योतिष होने के नाते कहना चाहेंगे कि स्वतंत्र भारत की पत्रिका के अनुसार अभी चन्द्रमा की दशा चल रही है और मंगल की दशा आनी बांकि है ।
किसी भी युद्ध की तैयारी के लिए शांति प्रक्रिया का अमल और पहल किया जाता है साथ ही उचित समय की प्रतीक्षा करना भी कायरता नहीं है । युद्ध नहीं होगा हम मानव उसे टालने में या नियंत्रित करने में सफल होंगे ऐसा सोचना भी मुर्खता है फिर भी हमें सोचना चाहिए और निश्चित समयान्तराल में हुंकार भी भरना चाहिए चाहे वह शांति के लिए हो या युद्ध के लिए । 
श्री कृष्ण ने गीता में कहा है -
मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा ।
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः  ।।
अतः हे अर्जुन ! अपने सारे कर्मों को मुझमें समर्पित करके मेरे पूर्ण ज्ञान से युक्त होकर, लाभ की आकांक्षा से रहित, स्वामित्व के किसी दावे के बिना तथा आलस्य से रहित होकर युद्ध करो ।
श्री कृष्ण के विषय में सभी जानते हैं हमारी क्षमता भी नहीं कि मैं उनके तत्वों का बखान कर सकुं । लेकिन एक बात और जो कहना चाहेंगे कि सभी धर्म के धार्मिक पुस्तकों में युद्ध की चर्चा है । और कोई भी समानता हो या नहीं हो युद्ध की चर्चा और अधर्म पर धर्म का विजय सभी धर्मों में एक समान बताया गया है । धर्मानुसार पात्रों के नाम बदल जाऐंगे लेकिन अर्थ एक ही है युद्ध ही अधर्म को समाप्त करने का एक मात्र साधन है ।

आप हमसे सहमत हैं या नहीं हैं हम इसकी चिंता नहीं करते कल पात्र हम होंगे या आप इसको भी नहीं जानते लेकिन इतना जरूर कहना चाहते हैं कि अधर्म का अन्त करने के लिए युद्ध जरूरी है और वो निश्चित होगा । 
हमारे सनातन धर्म में अनेक जगहों पर चर्चा है कि अपने मातृभुमि की रक्षा के लिए युद्ध में मरने वाला मोक्ष को प्राप्त करता है जिसे हम और आप शहीद कहकर सम्मानित करते हैं । हमारे संविधान युद्ध में मरने वाले को शहीद कहा जाता है कि नहीं इसकी चर्चा तो संसंद में ही हो लेकिन युद्ध होगा शहीद होंगे संविधान माने या न माने हमारा सनातन धर्म उसे शहीद मानता है और उसके आत्मा की शांति एवं मोक्ष हेतु प्रार्थना करता है । 
यह चर्चा तो आज इसलिए कर रहे हैं कि गुरमेहर कौर ने पोस्ट के माध्यम से प्रचारित किया कि मेरे पिता को पाकिस्तानियों ने नहीं मारा उनको युद्ध ने मारा है शतप्रतिशत सच बात है । तो क्या युद्ध नहीं होना चाहिए, इसका कोई तात्कालिक या दीर्घकालिक योजना कोई समझा सकता या बना सकता है आसान है कहना कि भाई-बहन का देश बनाएंगे पहले तो अपने मन को मानवता की ओर ले चलें और समझें कि युद्ध जरूरी क्यों होता है ।
गुरमेहर को जितनी समझ थी तथा उनकी माता ने उसे किसी कौम विशेष से नफरत करने से बचने की जो शिक्षा दी थी उसकी तारीफ होनी चाहिए हर मां-बाप को अपने बच्चों को ऐसी ही शिक्षा देनी चाहिए लेकिन अधर्मियों का नाश होना चाहिए तथा इसका नाश करने के लिए हम सभी को तैयार रहना चाहिए और अपने बच्चों में  भी धर्म के अनुरूप अधर्म से लड़ने का साहस भरना चाहिए । 
हमारे यहां तो धार्मिक पुस्तकों को जलाया जाता है फाड़ा जाता है और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर व्याख्यान दिये जाते हैं । बहुत दुःख हुआ था उस दिन जिस दिन मनुस्मृति को जेएनयु में फाड़ा गया उससे भी अधिक दुःख होता है वैसे अज्ञानी युवकों पर जो उसकी अनर्गल व्यख्या कर एसे सभ्यता के विरूद्ध बता कर किसी धर्म विशेष को आहत भी करते हैं और अपने अज्ञानता का परिचय भी देते हैं इसमें कुछ अध्यापक भी शामिल होते हैं । 
हम दावे के साथ कह सकते हैं शास्त्रों की समझ और व्याख्या आप तभी कर सकते हैं जब आपका दिमाग आपके वश में हो और आप नियमित शास्त्रों का अध्ययन करते हों शास्त्रानुकुल अपने आप को बनाने के लिए प्रयास रत रहते हा,ें नहीं तो आप किसी श्लोक या किसी अध्याय मात्र को पढ़कर अपने आप को कुंठित कर सकते हैं और दुसरे के दिमाग को भी दिग्भमित कर सकते हैं । विद्वान जनों अर्थात अध्यापकों को चाहिए कि ऐसे अज्ञानी लोगों का मार्गदर्शन करें न कि उसके अज्ञानता का लाभ लेकर अपने किसी विशेष कुंठित नीति से जनसामान्य को परेशान करें ।
श्री कृष्ण ने कहा है लाभ, आकांक्षा तथा स्वामित्व के दावे के बिना आलस्य रहित होकर युद्ध करो और ऐसा युद्ध मातृभूमि की रक्षा के लिए या अधर्म पर धर्म की विजय के लिए ही होता है । आप सभी पाठकों को सिर्फ इतना ही कहना चाहेंगे कि श्री कृष्ण की उपस्थिति तथा उनके नेतृत्व में ही महाभारत हुआ था युद्ध टालना संभव होता तो महाभारत नहीं होता । हम कहना चाहते हैं कि किसी समस्या का प्रारंभ युद्ध नहीं है लेकिन अंत युद्ध से ही संभव है चाहे इसके परिणाम कितन भी भयावह हों । युद्ध भी होगा और अधर्म की पराजय भी होगी चाहे अधर्मी कोई भी हो........................................