Friday 16 December 2016

गवर्नर उर्जित पटेल ने सरकार की पोल खोल दी


नोटबंदी के एलान का समय अनुकुल नहीं पर हमने ब्लॉग लिखा तो हमारे करीबी दोस्त कहने लगे कि आप विपक्षी की तरह बोल रहे हैं जबकि याद करके देखें तो विपक्षी भी स्तब्ध था कि इस कदम का विरोध किस तरह किया जाय और उनलोगों ने आम जनता के कतार में लगने से उत्पन्न परेशानी को ही विशेष रूप से प्रदर्शित किया । हमारे देश के सभी अर्थशास्त्री भी समर्थन में रहे कि इस फैसले का वर्तमान एवं भविष्य में अच्छे परिणाम होंगे । मैंने भी वक्त मांगा था आज समय भी है और ज्योतिष होने के कारण सिर्फ और सिर्फ ज्योतिष के ही आधार  पर इसका जबाव देना पसंद करूंगा ।
सबसे पहले तो एलान का वक्त मोक्षदा एकादशी के बाद सूर्य के मकर प्रवेश तक के ही समय का चयन करना उचित होता । इसके कई कारण हैं हम ताक शास्त्र आधारित कारण पर ही विचार करेंगे -
1. मोक्षदा एकादशी के बाद शादि-विवाह, गृहप्रवेश या यज्ञ आदि के लिए उचित समय नहीं कहा जाता है जिस कारण लोगों को कम-से कम परेशानी होती ।
2. भारत वर्ष में मृत्यु का दर और दिनों के अपेक्षा इन दिनों सबसे कम होता है । बुजुर्ग सूर्य के उत्तरायण होने का इन्तजार करना चाहते हैं और इश्वर से भक्ति करते हैं कि कम से कम और इतना वक्त जरूर इश्वर दे कि सूर्य के उत्तरायण होने के पश्चात ही दम निकले । ऐसा क्यों इसकी चर्चा महाभारत में है कि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यू का वरदान प्राप्त था और वे तीर की शय्या पर दर्द को बर्दाश्त करते रहे लेकिन सूर्य के उत्तरायण होने पर ही शरीर का त्याग किया ।
3. मोक्षदा एकादशी से पूर्व ही सभी किसान अपने फसल की बुआई 100 प्रतिशत तक कर लेते हैं ।
4. एक महीने आगे की तिथि होने से कुछ नोटों की छपाई और संभव हो जाती जिससे कम से कम समय में नए नोटों की आपूर्ति हो पाती और जनता के साथ-साथ सरकार की भी परेशानी कम होती साथ ही काले धन वाले को भी कम से कम मौका मिलता नोटों को बदलने का ।
यहां कुछ भी नहीं कहा जा सकता एलान हुआ और परिणाम भी हम सभी देख रहे हैं । देश का मिजाज नाम से भी दुसरा ब्लोग लिखा था जिसमें बताने का प्रयास किया था कि उग्र देशभक्ति किसी रूप में स्वीकार्य नहीं होना चाहिए । इसका दुरगामी परिणाम अच्छे नहीं हो सकते । एलान के बाद देश में कमोवेश ऐसी ही स्थिति बनी रही । जो अशिक्षित हैं उनकी बात छोड़ भी दी जाय तो शिक्षित लोग भी पीछलग्गु की तरह इस फैसले का समर्थन करते रहे जबकि बाजार और व्यापार दोनों के उपर बुरा प्रभाव रहा सेंसेक्श और निफ्टी में भी रिकार्ड गिरावट देखी गयी । 

कुछ समय बाद पूर्वप्रधान मंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह के संसद में चर्चा करने पर कि जीडीपी में 2 प्रतिशत की गिरावट आने की संभावना है तो धीमें स्वर में इस तरह से विरोध प्रकट होना शुरू हुआ की विकास दर में कमी आएगी लोग नौकरी से निकाले जाएंगे । संगठित और असंगठित दोनों मजदुरों पर इसका खासा प्रभाव पड़ेगा आदि-आदि लेकिन मुखर होकर कोई भी बोलने से बचता रहा कि इसके परिणाम वर्तमान समय एवं मध्ययम अवधि के लिए नुकशान देह है ।
सरकार को राजस्व का घाटा नहीं होगा क्योंकि यदि व्यापार के चलने से जो राजस्व अन्य माध्यमों से प्राप्त होता वह एडभांस टैक्स और 31 मार्च को वित्तिय वर्ष के अंत में आने वाले टैक्स से पुरा हो जाएगा । 
हमारा मानना है कि इसके बावजुद सरकार को राजस्व का घाटा होगा, विकास दर में कमी आएगी, वेरोजगारी का खतरा बढ़ेगा, प्रशानिक विभागों पर अन्यत्र भार बढ़ेगा जिसका इमानदारी से पालन करना अधिकांश विभाग एवं विभागीय कर्मचारी के स्वभाव में नहीं है । इसका कारण है कि नोट की छपाई एवं वितरण, पुराने नोटों का निबटान करने में आने वाला खर्च भी कई हजार करोड़ों में होगा साथ ही व्यापार की सुस्ती से राजस्व का घाटा अलग से ।
अब फायदे की बात की जाय तो सरकार के दावे का पोल तो रिजर्व बैंक के गवर्नर ने खोल ही दिया कि अपने रूटीन बैठक के बाद भी व्याज दरों में कोई कटोती नहीं कि क्योंकि वो मंदी की आशंका से ग्रसित हैं । इससे बड़ा प्रमाण सरकार को कौन दे सकता है । आम लोगों की परेशानी मौतें आदि तो प्रमाण स्वरूप मानना ही चाहिए ।
काला धन समाप्त हो गया या हो जाएगा इसकी गारंटी तो मोदी जी दे ही नहीं सकते क्योंकि पहले दिन से आजतक कालाधन गुलाबी हो रहा है ये सभी हम सभी मिडिया के माध्यम से जानते ही हैं और कहना चाहेंगे कि जो पकड़ा गया या पकड़ा जाएगा उसका प्रतिशत दशमलव के बाद लगे अंकों में ही होगा ऐसा ही समझना चाहिए अर्थात काला धन एक्सचैंच हो जाएगा या आसानी से हो रहा है । ये और बात है कि मुट्ठी भर लोगों को पकड़ कर ये दावा कर लेना कि काला धन समाप्त कर दिया ।
एक बात और कि यदि आजतक 13 लाख करोड़ से अधिक बैंकों में जमा हो गए तो क्या बचे हुए दिनों में 14.5 लाख करोड़ पुरे नहीं हो जाऐंगे तो काला धन कहां गया यह एक प्रश्न है इसका उत्तर नए साल में हम भी देंगे । सरकार तो जनता को समझाने के लिए अंको की हेरा-फेरी कर ही सकती है ।
हमारे कहने का सार यह है कि वर्तमान समय और आने वाले एक वर्ष तक सरकार के साथ-साथ जनता को इसके नतीजे भोगने होंगे । इसकी तैयारी तो सरकार ने तेल के खेल से कर ली है पर जनता क्या करेगी .................... ।
चन्द्रमा में मंगल की दशा समाप्त होगी तो राहु की दशा आएगी आप और हम योजना और योजनाओं का अंबार समाचार के माध्यम से सुनेंगे लेकिन 2019 तक इसके परिणाम नहीं आएंगे । हमारे पास सुनने के लिए जन-धन योजना, कृषि वीमा योजना, नोटबंदी के अलावा कुछ नहीं होगा इसके बावजुद हम अपना मत तो 2019 विकल्प के आभाव में .......................................................................... ।

Tuesday 6 December 2016

शून्य से शून्य


सबसे पहले तो माननीया स्व0 जयलतिता जी को हृदय से श्रद्धांजली, इश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें । कुछ तो बात रही होगी उनके व्यक्तित्व में जो जनसैलाव भावुक होकर उनके अंतिम दर्शन को उमड़े । मैंने भी टक-टकी लगाकर उनके अंतिम यात्रा को टेलिविजन के माध्यम से देखता रहा और सोचता रहा कि अम्मा ने क्या पाया और क्या खोया, हम सभी जानते हैं कि सबको एक दिन शून्य में समा जाना है फिर भी हाय-हाय के शोर से बचा नहीं जा सकता ।
आज तो अम्मा जी के 68 साल का सफर शून्य से शून्य तक को ही कहना उचित होगा । सभी जानते हैं उनके बारे में कि जब पिता क्या होता है और क्यूं होता है तब दो साल की छोटी उम्र में पिता का साया सिर से उठ गया यह भी एक शून्य ही था उनके जीवन में । माता के लाड-प्यार के साथ बचपन गुजरता लेकिन मां कि व्यस्तता भी उनके जीवन में शून्य की तरह रहा । दसवीं की पढ़ाई तक अव्वल रहने वाली छात्रा अपने मनोनुकुल शिक्षा ग्रहण न कर पायी यह भी एक शून्य था । हम अमीर हैं ऐसे ख्वाब थे लेकिन अमीरी को कायम रखने के लिए कम उम्र में ही काम करना पड़ा क्या ये शून्य नहीं था । न चाहते हुए भी फिल्म में ही करियर बनना पड़ा यह भी जीवन में शून्यता को ही दर्शाता है । जिस क्षेत्र में कार्यरत थी और जितनी खुबसुरत थीं कि दोस्तों की कमी नहीं रही होगी लेकिन कोई हमसफर नहीं हो सका क्या इसको शुन्य नहीं कहेंगे । दत्तक पुत्र को प्यार दिया और उसकी शादि की चर्चा गिनीज बुक के रिकार्ड में दर्ज हुआ और वह पुत्र भी साथ छोड़ गया यहां भी शून्य ही है । एमजीआर का सहारा मिला पर साथ नहीं, उनके देहान्त के बाद की दशा और उस शून्य को तो शायद अम्मा याद भी न रखना चाहती होगी । 
जीवन शुन्य था धन-दौलत की आवश्यक्ता जरूरत से अधिक की न थी फिर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे और सांसारिक चमक को छोड़कर जेल जाना पड़ा क्या ये शून्य नहीं था ? गहनों की शौकिन थी इश्वर की कृपा से किलो की मात्रा में गहने प्राप्त थे फिर भी गहना पहनने से तौबा करना पड़ा यह भी शून्य ही था ।
सीएम की कुर्सी मिलती रही और छुटती भी रही रंगीन संसार के शून्य में रहने वालों की सोच उनके जीवन में तभी तो आया और उस शून्य में रहने वाले गरीबों के लिए जो कुछ भी किया वही तो उनका पुण्य बना और अंतिम समय में अपोलो में सिर्फ शशिकला जैसी दोस्त का सहारा मिलता रहा और अंततोगत्वा पृथ्वी के शून्य में समा गयी ।

बचपन में उत्साह रहे होंगे, जवानी में जोश रहे होंगे, पद का गुमां भी रहा होगा लेकिन शून्य से आये शून्य का साथ रहा और शून्य में विलीन हो गयी ।
हमें आपको समझना चाहिए और हाय-हाय का शोर कम करना चाहिए ।
अम्मा को पुनः नमन के साथ हार्दिक श्रद्धांजली जिन्होंने हमें अपने वर्तमान जीवन को समझने के लिए प्रेरित किया ।