Friday 10 June 2016

हास्यास्पद है राशिनुसार नित्य नए रंगों का प्रयोग बताना


सबसे पहले तो कहेंगे कि हमारे शास्त्रीय पुस्तकों तथा वेदों में ऐसा नहीं बताया गया है कि राशिनुसार नित्य नए रंगों के प्रयोग से भाग्य बदल सकता है या किसी अशुभ परिणामों को शुभ परिणामों में परिवर्तत करता है ।  अगर किसी ने ऐसा शास्त्रीय पुस्तकों में पढ़ा हो तो जरूर हमें मेल करके बताएं साथ ही संबंधित पुस्तक का नाम भी बताएं । जो लोग ऐसी व्याख्या करते और जो अनुकरण करते हैं उसे भी समझना चाहिए कि हम शास़्त्रों की सार्थक व्याख्या होनी चाहिए न कि निरर्थक ।
यह भी बताना चाहेंगे कि किसके लिए कौन सा रंग शुभ है और जीवन भर वो रंग शुभ रहेगा ऐसा बताना संभव है वो भी लग्न व राशि तथा उसके स्वामी के स्वभाविक रंग के आधार पर ।
सर्व प्रथम तो पराशर के अनुसार राशियों के रंग का वर्णन करते हैं -
मेष - रक्त वर्ण, बृष - श्वेत, मिथुन - हरा, कर्क - पाटल, सिंह - पाण्डवर्ण, कन्या - चित्रवर्ण, तुला - कृष्ण वर्ण, बृश्चिक - पिशांगवर्ण, धनु - चित्रवर्ण, मकर - चित्रवर्ण, कुंभ - भुरेवर्ण तथा मीन - सफेदवर्ण का कहा गया है ।
किसी के लिए लग्न या राशि तथा उसके त्रिकोण राशि के रंग को शुभ कहेंगे । लग्न या राशि के स्वामी के मित्र ग्रहों की राशि के रंगों को शुभ कहेंगे । 

जब ग्रह और राशियों के रंग नित्य नहीं बदलते तो हमारे लिए नित्य नए रंगों का शुभ या अशुभ होना कैसे संभव है । चन्द्रमा के आधार पर बताया जाए तो भी चन्द्रमा एक ही राशि में 54 से 56 घंटे तक गोचर करते हैं तत्पश्चात ही राशि परिवर्तन करते हैं लेकिन हम जैसे ज्योतिष तो प्रतिदिन ही अलग-अलग रंग हमारे लिए शुभ और अशुभ बताते हैं ।
यदि कोई सिद्धान्त होता तो सभी ज्योतिष एक जैसा ही रंग बताते लेकिन यहां तो मेष के लिए कोई लाल बताता तो कोई हरा अन्य कोई रंग बता जाता है किसको सही माने किसको गलत । सिद्धान्त पर आधारित होता तो बारह के बारह राशियों के लिए सभी ज्योतिष किसी भी दिन के लिए एक समान ही रंगों को बताते ऐसा नहीं देखा गया । यहां यह भी कहना संभव नहीं है कि किसको ज्ञान है और कौन अज्ञानी क्योंकि ज्योतिष में विश्वास करने वाले सभी लोग ज्योतिषियों को विद्वान ही मानते हैं । 
कहा गया है आपरूप भोजन और पररूप श्रींगार आज के परिवेश में तो और भी आगे की बात समझ में आती है कि आयोजन एवं जरूरतों के अनुकुल रंगों का चयन करना चाहिए और लोग करते हैं ये बहुत अच्छी बात है ।
हम ज्योतिष के मानने वाले को सिर्फ इतना ही कहना चाहेंगे कि आप राशि के रंगों का ध्यान में रख सकते हैं तथा अपने रंग-रूप, आकृति-प्रकृति एवं आयोंजन के आधार पर रंगों का चयन कर रंगों का प्रयोग कर सकते हैं आपके मन को सकुल मिलेगा ।
ऐसे अंधविश्वासों से आप खुद भी बचें और औरों को भी बचाने का प्रयास करें नहीं तो धीरे-धीरे लोगों का विश्वास हमारे ज्योतिष शास्त्रों से उठ जाएगा ।
आग्रहपूर्वक पुनः कहना चाहेंगे कि यदि विद्वान ज्योतिष ने कहीं भी ऐसा सिद्धान्त पढ़ा और उसकी व्याख्या की हो तो उदाहरण प्रस्तुत करें ताकि हम अपना ज्ञानवर्धन कर सकें और अन्य लोगों का विश्वास नित्य नए रंगों के प्रति गहरा हो सके और अधिक से अधिक लोग मान सकें ।

Thursday 2 June 2016

संशय छोड 04.06.2016 शनिवार को मनायें वटसावित्री व्रत


उत्तर पूर्व भारत में सौभाग्य प्राप्ति हेतु विशेष रूप से मनाया जाने वाला व्रत वटसावित्री के तिथि निर्धारण एवं शास्त्रोक्त निर्णय ।
एक बात तो स्पष्ट होता है कि ज्ञान के आभाव और ज्ञान के दंभ के कारण हमारे पारिवारिक, सामाजिक एवं वैश्विक हित का बड़ा नुकशान होता है । आज चर्चा तो बटसावित्री व्रत की बात करेंगे ब्राह्मण या विद्वान ज्योतिषीय के द्वारा पंचाग आधारित व्रत किस तिथि को मनाया जाय इसमें भेद होता है जबकि हमारे शास्त्रों में भेद का कोई स्थान नहीं है, सबसे पहले वो गृहणियां जो इस व्रत को करती हैं वो अपने-अपने सूत्र से जानकारी एकत्रित कर खुद असमंजश की स्थिति में होती हैं और अपने-अपने आधार को पुख्ता मानकर व्रत को करती हैं । आज हमारे पास ये लिखने कारण है कि गृहणियों द्वारा लिए गऐ अपने-अपने सूत्र से व्रत हेतु निर्णय का समर्थन प्राप्त करने के लिए प्रश्न आया शुक्र है मैं उनसबों को समझाने में सफल हुआ लेकिन प्रश्न वहीं स्थिर है कि ऐसी परिस्थितियां क्यों उत्पन्न होती है । क्या इसके लिए हम ज्ञानी ही जिम्मेवार हैं तो इसका सामना भी सरल स्वभाव से हमलोगों को ही करना होगा ।
तिथि केप्लर सिद्धान्त पर नहीं चलता यहां सूर्य एवं चन्द्रमा के गति पर आधारित होने के कारण एक निश्चित समय में प्रारंभ और अंत नहीं होता इसलिए उदया तिथि की विशेष मान्यता होती है जो एक मोटी जानकारी है इसके कारण ही संशय उत्पन्न होता है, लेकिन ये अंतिम सत्य नहीं होता अगल-अलग व्रत के लिए अलग-अलग निर्णय लेने होते हैं जो शास्त्रों में वर्णित है । प्रसंग लंबा हो जाएगा इसलिए वट सावित्री के ही विषय में बात करते हैं -
वटसावित्री व्रत निर्णय शास्त्रोक्त - 
वटसावित्री व्रत पूजाविधौ ज्येष्ठामावास्या सम्भवे चतर्दशी विद्धैव ग्राह्या प्रतिपदायुतायाः निषेधात् ।
यहां स्पष्ट है कि चतुदर्शी सहित अमावश ही ग्राह्य है न कि प्रतिपदा सहित । यहां किसी संशय को जगह नहीं दिया गया है ।
वर्ष 2016 में ज्येष्ठ अमावश जो चतुर्दशी सहित है  04.06.2016 दिन शनिवार इसलिए व्रत को इसी दिन मनाना उचित होगा ।
यहां जब चतुर्दशी सहिता अमावश को मनाया जाय तो समय निर्धारण न करते हुए निःसंदेह दिनपर्यन्त तक मनाया जाय ।
शास्त्रानुसार 05.06.2016 दिन रविवार को निषेध कहेंगे ।

स्कन्ध पुराण में वर्णित वटसावित्री व्रत में ब्रह्मा एवं सावित्री के पूजन का विधान बताया गया है । इस व्रत को करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है । पति की लंबी आयु एवं पिता के चिर साम्राज्य तथा कुलोन्नत्ति तथा जन्मजन्मांतर तक सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है ।
स्कन्ध पुराण में वर्णित पतिव्रता सावित्री एवं सत्यवान की कथा का स्मरण करना चाहिए । विवाहिता स्त्री आज के दिन ब्रह्मा एवं सावित्री की पूजा करती हैं । सावित्री-सत्यवान की कथा को पढ़ती या सुनती हैं साथ ही वटवृक्ष की पूजा, वटवृक्ष की परिक्रमा आदि का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है । व्रत के सभी विधान वटवृक्ष के नजदीक ही करने का विधान है ।
कथा सभी जानते हैं हमारा प्रयास तो सिर्फ आप सभी का संशय दुर करना था ।
ज्योतिषाचार्य पं. श्रवण झा “आशुतोष”
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