Sunday 27 December 2020
Saturday 20 June 2020
ग्रहण, वेद, विज्ञान और हम
हमारी संस्कृति आदि काल
से चली आ रही है और सृष्टि के अंत तक रहेगी और पुनः सृष्टि के प्रारंभ से ही
प्रारंभ हो जाएगी । हमारी संस्कृति के सभी दृष्टिकोण वैज्ञानिक हैं इसे सभी मानते
हैं लेकिन इसकी सराहना नहीं करते जबकि हमारा सनातन धर्म विज्ञान का पक्षधर ही नहीं
अपितु उसका मार्गदर्शक भी है । उदाहरण असंख्य हैं आज आप ग्रहण के रूप में समझ सकते
हैं ।
21
जून आज सूर्य ग्रहण है 9
बजकर 15 मिनट से 3 बजकर 15
मिनट तक लगभग इसका स्पर्श एवं मोक्ष का काल होगा । ग्रहण की घटनाओं की चर्चा
विज्ञान की विकास के पूर्व से हमारे वेदशास्त्रों में वर्णन प्राप्त होता है और
शायद इसी निश्चित संकेत से अचंभित होकर विज्ञान ने इसके उपर काम प्रारंभ किया होगा
। सैकड़ों वर्ष पूर्व ही ग्रहण की घटनाओं को सटीक बताने में आज भी हमारे
धर्मशास्त्र के विद्वानों से आगे कोई नहीं ।
आज के परिवेश में हमारे
सनातन धर्म को मानने वाले विशेष समुदाय जिसे हिन्दु कहते हैं उनकी नयी पीड़ि इसे
ढकोसला मानते हैं क्योंकि वो वर्तमान की शिक्षानीति के कारण ज्ञान की शिक्षा से
दूर होते जा रहे हैं । हम श्रेष्ठ नहीं है अपितु हमारा सनातन धर्म श्रेष्ठ है इसे
जब हम अपनाऐंगे तभी हम श्रेष्ठ हो सकेंगे यह सभी मनुष्यों को समझना होगा ।
ज्योतिष को वेद का नेत्र
कहते हैं लेकिन इसको बताने वाले असंख्य लोग स्वयं अंधे हो चुके हैं और जो उनके मन
में आता है वही बताते हैं जिससे हमारे सनातन धर्म की गरिमा कम होती है । इस बात का
हम सभी को ध्यान रखना होगा । यह घटना अंधविश्वास का नहीं अपितु विश्वास को प्रगाढ़
करने का और अपने सनानतन सत्य को उसी के अर्थ में स्वीकार करने का समय है । ग्रहण
काल में उत्पन्न परेशानियों के विषय में जो बताया गया है उसे वैज्ञानिक ढंग से
सोचने और समझने के बगैर इसे अंधविश्वास बनाकर दूसरों को डराने का काम नहीं करना
चाहिए । जो वैज्ञानिक हमारे शास्त्रों को चुनौति देना चाहते हैं उनके साथ तर्क
पूर्ण ढंग से तर्क करना चाहिए और अपनी मान्यताओं व आस्थाओं का वैज्ञानिक कारण
बताना चाहिए ।
सबसे पहले मुख्यरूप से जे
ज्योतिषाचार्य कहते हैं -
1- ग्रहण
का कुप्रभाव होता है ।
2- सूतक
काल का पालन करना चाहिए ।
3- ग्रहण
पूर्व, ग्रहण के मध्य एवं ग्रहण
के पश्चात, पवित्र
नदियों में या घर में स्नान करना चाहिए ।
4- ग्रहण
काल में खाना-पीना निषेध है ।
5- ग्रहण
काल में जप-तप का विशेष फल प्राप्त होता है ।
6- गर्भवती
महिलाओं को विशेष सावधान रहना चाहिए ।
7- ग्रहण
के पश्चात दानादि सफाई कर्मचारी को देना चाहिए ।
8- राशिनुसार
ग्रहणकाल के उपरान्त लाभ-हानि होता ।
9- ग्रहण
का प्रकृति के उपर कुप्रभाव होता है ।
आज हम आपलोगों के लिए यह
लेख ग्रहण काल के दौराण ही लिख रहे हैं । यहां हम इसे संक्षेप में ही ग्रहण के
धार्मिक मान्यताओं का आध्यात्मिक कारण बताने का प्रयास करेंगे और आगे इसका विस्तार
भी देने का प्रयास करेंगे ।
1- क्या
ग्रहण का कुप्रभाव होता है ?
हां । ग्रहण का कुप्रभाव
होता है हमारी भौगोलिक संरचना तथा सूर्य एवं चन्द्रमा का प्रकाश हमारे जीवन में
अमृत के समान होता है और हम जहां लगातार रहने लगते हैं हमारा पंचतत्व से निर्मित
शरीर उसका आदि हो जाता है । उदाहरण के लिए आप जितनी मात्रा में एक मिनट के अंदर
आॅक्सीजन ग्रहण करते हैं उससे थोड़ी मात्रा भी कम हो जाए तो आप अच्छा महशुस नहीं
करते और घबराहट होती है उसी तरह सूर्य की किरणें हमारीे भौगोलिक परिस्थितियों में
हमें जितना मिलना चाहिए नहीं मिल पाता इसलिए इसके कुप्रभाव जरूर होंगे इसको
विज्ञान को मानना ही पड़ेगा । हम सभी जानते हैं कि सूर्य की किरणों से असंख्य
कीटानु एवं विषाणु का नाश होता है । एक सेकेण्ड में जितना प्रभाव हमारे पृथ्वी पर
सूर्य का होता है उसके दसवें हिस्से भी कम हो जाने पर न जाने कितने विषाणु और
कीटानु कुछ समय के लिए हमें नुकशान दे सकते हैं जिसका दूरगामी प्रभाव रोगों के रूप
में हम प्राप्त करते हैं । इसकेा विस्तार आगे समझेंगे जिसे विज्ञान मना ही नहीं कर
सकता । इसे हम मान्यताओं के रूप में ही सही मानते हैं तो क्या गलती करते हैं क्योंकि हमारे यहां सभी शिक्षित नहीं हैं ।
2- सूतक
काल का क्या अर्थ है क्या ये अंध विश्वास नहीं है ?
जी नहीं । वर्तमान सूर्य
ग्रहण कोरोना काल में आया है । कोरोना से आप-हम सभी परिचित हो चुके हैं । सोशल
डिसटेंसिंग, साफ-सफाई
आदि से इसका बचाव करते हैं । उपर बताया गया है कि ग्रहण काल के दौरान सूर्य की
किरणों का प्रभाव कम हो जाने के कारण असंख्य कीटानु एवं विषाणु कुछ देर तक जीवित
रहने में सक्षम होते हैं जिसके कारण हमारे उपर कुप्रभाव होता है । इसी विषाणुओं से
बचने के लिए मंदिर को 6
घंटे या 12
घंटे पूर्व साफ-सफाई के बाद बंद कर दिया जाता है और ग्रहण समाप्ति के 6 घंटे या 12
घंटे बाद पुनः साफ-सफाई के बाद ही पूजा अर्चना किया जाता है और आम लोगों के लिए
खोल दिया जाता है । क्योंकि इतने समय के पश्चात विषाणुओं का खतरा समाप्त हो जाता
है । इसका भी विस्तार आगे देने का प्रयास
करेंगे...... ।
3- क्या
ग्रहण काल में खाना-पीना निषेध माना जाना चाहिए ?
जी हां । यहां बृद्ध, रोगी एवं
बच्चों को सावधानी पूर्वक भोजन देना चाहिए उनके लिए शास्त्र भी निषेध नहीं बताता
हो सकता है इसके कारण उनके जान को खतरा हो सकता है । लेकिन यदि आप कुछ समय तक
भोजन-पानी के बिना रह सकते हैं तो आपको इसका पालन करना चाहिए । कारण तो आप उपर समझ
चुके हैं यहां खाने-पीने के साथ विषाणुओं का शरीर में प्रवेश संभव है इसलिए इसके
लिए मना किया जाता है । हम अपनी मान्यता को मानते हैं तो इसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण
क्यों नहीं देखना चाहते जो हमें अंधविश्वासी कहते हैं । विस्तार आगे...........।
4- ग्रहण
पूर्व, ग्रहण के मध्य एवं ग्रहण
के पश्चात पवित्र नदियों में या घर में स्नान अवश्य करना चाहिए ?
यदि संभव हो और कोई
परेशानी न हो तो अवश्य करना चाहिए । यदि आप स्नानादि नहीं कर सकते तो स्वच्छता का
ध्यान रखना चाहिए । कारण आपको उपर बताया गया है और आगे विस्तार से भी समझाने का
प्रयास करेंगे । यहां पवित्र नदियों आदि में स्नान का महत्व इसलिए है कि हम सभी
जानते हैं कि पवित्र नदियों का जल में स्नान करना औषधि स्नान के समान है लेकिन
वर्तमान समय में पवित्र नदियां यदि प्रदूषित हों तो उसमें स्नान नहीं करना चाहिए ।
उदाहरण - दिल्ली में यमुना में स्नान नहीं करना चाहिए ।
5- क्या
ग्रहण काल में जप-तप का विशेष फल प्राप्त होता है ?
पुनः दुहराना चाहेंगे कि
आइसोलेशन का अर्थ आज हम सभी समझ सकते हैं । यहां हम साफ-सफाई करके (जिसका पूजा-पाठ
में बहुत महत्व है) एक निश्चित स्थान में बैठकर यदि आध्यात्म चिंतन, मेडिटेशन आदि करते हैं तो इससे आपका
मानसिक बल बढ़ता है और विषाणुओं के संपर्क में आने से बच जाते हैं । यदि हमारी
मान्यता अपने आप को स्वस्थ रखते हुए आध्यात्कि चिंतन करना है तो इसपर विज्ञान को
क्या आपत्ति हो सकती है ।
6- क्या
गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधान रहना चाहिए ?
जी हां उनको विशेष
सावधानी की जरूरत है क्योंकि यहां दो जीवों की बात है । यहां हम कहना चाहेंगे कि
उन गर्भवती महिलाओं को विशेष ध्यान रखना चाहिए जिसका सातवां महिना पूर्ण होने को
है या शिशु का जन्म अब 10
दिन में होने वाला है । यहां ग्रहण काल के दौरान स्वच्छ शौचालय के प्रयोग करना
चाहिए एवं खाने-पीने में भी सावधानी वरतनी चाहिए ।
नुकीले वस्तुओं या धारदार
वस्तुओं का प्रयोग जो निषेध बताया गया है उसका कारण है कि किसी भी तरह से खुन यदि
बाहर आता है तो उसपर कीटानु-विषाणु का प्रभाव अतिशीघ्र होता है जिसका कुप्रभाव
दोनों को हो सकता है । इसे यदि हम अपनी मान्यताओं के अनुसार डराकर भी मनवाते हैं तो
आपत्ति क्या है । आज आपको पुलिस वाला डंडे मारकर मास्क पहनने की हिदायत दे रहा है
तो आप उसको अंधविश्वास क्यों नहीं मान रहे हैं । इसको भी विस्तार से बताऐंगे ।
7- ग्रहण
के पश्चात दानादि सफाई कर्मचारी को देना चाहिए ?
जरूर देना चाहिए इसपर
उसका पूरा अधिकार है । सदियों से चला आ रहा है कि सभी प्रकार के दान पर ब्राह्मण
अपना अधिकार मानते हैं लेकिन ग्रहण का दान सफाई कर्मचारी को देने का सुझाव देते
हैं और स्वयं भी देते हैं । ग्रहण के पूर्व और पश्चात सफाई का काम उनके हाथों में
विशेष रूप से रहता है जो हमें इसके दुष्प्रभावों से बचाता है । पूर्व काल में काम
के बदले अन्न देने की ही प्रथा रही है यदि आज उसी अन्न में थोड़ा तिल मिलाकर दान
करवाना चाहते हैं ताकि उस कर्मचारी को विशेष कार्य का विशेष लाभ मिले तो
अंधविश्वास कैसे हो गया ।
8- राशिनुसार
ग्रहणकाल के उपरान्त लाभ-हानि होता ?
9- ग्रहण
का प्रकृति के उपर कुप्रभाव होता है ?
इसकी चर्चा बृहत हो सकती
है । साधारण शब्दों में बताना चाहेंगे कि एक सेकेण्ड के लिए धरती हिलती है अर्थात
भुकम्प आता है तो इससे कितना भय होता है यह भी तो एक भौगोलिक घटना है । इसपर
वैज्ञानिक ग्रहण की तरह अदभूत नजारा क्यों नहीं मानते और आनंद क्यों नहीं उठाते
क्योंकि इसका प्रभाव प्रत्यक्ष में प्रभावित करता है और ग्रहण का प्रभाव
अप्रत्यक्ष रूप से ग्रहण काल के पूर्व और पश्चात में कुछ समय तक प्रभावित कर सकते
हैं इसलिए सावधानी की जरूरत भी है ।
इसकी चर्चा संहिता
ज्योतिष के आधार पर विस्तार से करेंगे तभी आपको स्पष्ट रूप से ज्ञात होगा कि हम
सनातनी वेदपाठी ग्रहण को विज्ञान की दृष्टि से ही समझते हैं और वैज्ञानिकों का
मार्ग भी इस घटना को समझने के लिए प्रसस्त करते हैं ।
शिक्षा का आभाव, मुगलों एवं अंग्रेजो का शासन और हमारी
पश्चिमी सोच हमें अपने धर्म की रक्षा के लिए मान्यताओं और आस्थाओं जैसे मार्ग का
अनुसरण करने के लिए विवश करती रही है । अब समय आ गया है कि सनातन सत्य का
वैज्ञानिक आधार लोगों के सामने स्पष्टता से रखा जाय नहीं तो सनातन सत्य को
अंधविश्वास बताकर हमारी आनेवाल पीढ़ियों से हमको एवं हमारी संस्कृति को अलग कर देगी
।
विस्तार से भी लेख देने
का प्रयास करेंगे । धन्यवाद !
वेद के जानकार और
वैज्ञानिक यदि मिलकर काम करें तो मानव कल्याण की समुचित एवं सुदृढ़ व्यवस्था कर
सकते हैं अन्यथा अपने को श्रेष्ठ बताने के प्रयास में जन की हानि ही होगी और कुछ
नहीं ।
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