Saturday 12 March 2016

भारत विश्व गुरू बन गया

कर्म सर्वोपरी है, कोई भी कर्म से विमुख होकर नहीं रह सकता और सभी लोग अपने-अपने ज्ञान एवं सामथ्र्य के अनुकुल कार्य करते रहते हैं, कर्मफल की बात नहीं करते क्योंकि श्री कृष्ण ने कहा है कर्मण्ये वाधिकारस्य मा फलेशु कदाचन् ..... लेकिन कर्म के विषय को समझते हैं सभी लोग कर्म के विषय में कुछ न कुछ जरूर जानते और बोलते हैं ठीक उसी तरह जिस तरह हम भी अपने ज्ञान के आधार पर कुछ लिखने बैठ गये और कर्म से ही प्रारंभ किया गीता में कर्मयोग नामक अध्याय है जिसे अनेक लोगों ने पढ़ा होगा और जिसने नहीं भी पढ़ा हो वे भी कर्म के विषय में जो कुछ भी कहते हैं वह उसी अध्याय में सिमट कर रह जाता है । आज हम आम लोग क्या कहते हैं उसी की चर्चा करते हैं - कहते हैं कर्म निष्ठापूर्वक करना चाहिए, कर्म इमानदारी से करना चाहिए, कर्म करने में पीछे नहीं रहना चाहिए, कर्म लगन के साथ करना चाहिए, कर्म को बोझ नहीं समझना चाहिए हम भी कहते हैं कि मन लगाकर कर्म करना चाहिए ...... । इसमें से किसी के कहे को मान लेने से हम सब सफल हो सकते हैं और भारत के संदर्भ में बात करें तो भारत विश्व गुरू बन सकते है ।
इसी तरह विद्वानों ने कर्म को अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग कर्म बताए हैं जिसमें संतों के लिए कुछ विशेष कर्म बताए होंगे । हम सभी लोग भी कुछ न कुछ सामाजिक परिवेश में रहकर समझते हैं कि प्रधानमंत्री के क्या करना चाहिए, संत को क्या करना चाहिए, व्यापारी को क्या करना चाहिए, विद्यार्थी को क्या करना चाहिए, महिलाओं को क्या करना चाहिए, पुरूषों को क्या करना चाहिए हमलोग तो विद्वानों एवं शास़़्त्रों से भी आगे जानते हैं कि हिन्दु को क्या करना चाहिए, मुसलमान को क्या करना चाहिए, अन्य धर्म वाले लोगों को क्या करना चाहिए, विभिन्न जाति के लोगों को क्या करना चाहिए आदि ।
हमारे साथ सारे भारतीयों का यह सपना है कि भारत विश्व गुरू बने और उसके लिए प्रधानमंत्री प्रयास रत हैं अपने कर्मों के दम पर । हमारे संत लोग भी विश्व गुरू बनने का प्रयास करते हैं अपने ज्ञान के दम पर ।
हमलाग सभी जानते हैं कि एक दुसरे की भाषा समझना कितना मुश्किल होता है और भारत तो विविधताओं वाला देश है सभी जानते हैं कि कोश मात्र के अन्तराल में भाषा या कहें बोली बदल जाती है जिसे समझना मुश्किल हो जाता है हम अपने ही देश में विभिन्न संस्कृतियों को भी संभाले हुए हैं । जिसकी वजह से कभी-कभी घोर संकट से भी गुजरना पड़ता है । लेकिन ये दुस्साहस भी भारतीय ही कर सकते हैं ।
किसी भी आयोजन का कोई न कोई मकसद होता है आम लोगों के समझ में नहीं आ रहा कि श्रीश्री रविशंकर के द्वारा कराये जा रहे इस भव्य आयोजन का मकसद क्या है ? उन्होंने कुछ बताया जरूर है पर आम लोग शायद ही समझ पाएंगे और जो प्रधान मंत्री जी ने बताया वो तो ब्रांड का प्रचार मात्र था ऐसा समझ में आया कि आर्ट आॅफ लिविंग क्या है और समापन दिवस पर केजरीवाल जी धन्यवाद में क्या कहेंगे ये भी पूर्व में सबको ज्ञात है कि अब हमें भी आर्ट आॅफ पोलिटिक्स आ गया ।

क्या एक प्रतिष्ठित संत के कर्म के अनुकुल है ये कार्यक्रम ? आपको सोचना है इसका फायदा और नुकशान भी आपको सोचना है इसकी अधिक जानकारी आपको मीडिया के माध्यम से बहुत कुछ मिलेगा आप अपना समय बर्बाद कर श्रीश्री और उनके भव्य कार्यक्रम और विश्व महिमामंडण को समझने का प्रयास करें ।.................
आज जो हमें समझ में आया कि प्रधान मंत्री जी का एक वादा कि हम विश्व गुरू बनेंगे हम उसकी ओर प्रयास रत हैं अब भारत को विश्व के लोग सम्मान से देखने लगे हैं यह सपना हम भारतीयों का पुरा हुआ । भारत विश्व गुरू बन गया गुरू के रूप में श्रीश्री को श्रेय देना चाहिए और सरकार के रूप में मोदी जी को ............
हमें बहुत कुछ करना है हमारे आम लोग कहते हैं कोई गुरू खाने नहीं देगा सरकार का रोज नया भाषण कल भी सुनने मिलेगा आज इतना ही समय बर्बाद कर सकते थे जो किया आपने भी यदि पुरा पढ़ लिया तो समझ ही गए होंगे हमारे समझ से तो जो लिखा वो शीर्षक मात्र है ।